पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कपासका संग्रह हो और उसपर काम करनेवाले देश-सेवक मिल जायें तो उन देश-सेवकोंकी संख्याके अनुपातमें हम कपासका मूल्य जितना बढ़ाना चाहें, बढ़ा सकते हैं।

यदि कपास दानमें मिले और उसपर काम करनेवाले लोग अपनी मेहनत भी दानमें दें तो खादीको हम पानीके दाम बेच सकते हैं; यह बात आसानीसे समझ में आ सकती है। किन्तु वस्तुतः ऐसा नहीं होगा, क्योंकि उसका प्रबन्ध करनेमें, उसे कतवानेमें, कितने ही सेवकोंको केवल आधा घंटा ही नहीं, बल्कि अपना सारा समय देना पड़ेगा; और यह स्पष्ट ही है कि वे बिना भत्तेके काम न कर सकेंगे। पर अगर आधे घंटेकी मेहनत देनेवाले हजारों भाई हमें मिल जायें तो थोड़े-से वैतनिक कार्यकर्त्ताओंसे ही हम बहुत काम कर सकते हैं। मगर इन सारे कार्योंके विषयमें विचार करनेसे पहले हमारे पास कपासका बड़ा संग्रह होना चाहिए। इसीलिए मेरी सलाह है कि कमेटियाँ कपासका जितना हो सके उतना संग्रह करें। संग्रह करनेवालोंको चाहिए कि जिस प्रकार पैसेका हिसाब रखा जाता है उसी तरह उसका हिसाब भी रखें। कपासका एक भी डोंड़ा बेकार न जाये, एक भी गाला हवामें न उड़े।

हमें उसका संग्रह करनेके उपायोंपर भी विचार करना होगा। यह भी जानना जरूरी होगा कि रुईकी गाँठें किस तरह बाँधी जायें। इस तरह कताईसे सम्बन्धित ये सारी क्रियाएँ समझमें आ जायेंगी। और जब इन सभी क्रियाओंका उद्देश्य सारी जनताका कल्याण होगा तो इनमें कितनी शक्ति आ जायेगी, यह समझदार पाठक सहज ही सोच सकते हैं।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ७-१२-१९२४

३४५. अध्यक्षीय भाषण: पंजाब प्रान्तीय सम्मेलनमें[१]

७ दिसम्बर, १९२४

गांधीजीने बताया कि उन्होंने सम्मेलनकी अध्यक्षता कैसे स्वीकार की। इस सिलसिलेमें उन्होंने लालाजीके नाम पण्डित मोतीलालजीका पत्र पढ़कर सुनाया। मोतीलालजीने इस पत्रमें लिखा था कि मैं व्यस्तताके कारण लाहौर आकर सम्मेलनकी अध्यक्षता नहीं कर सकूँगा। उन्होंने उसमें यह भी लिखा था कि मैं सम्मेलन वगैरह से तंग आ गया हूँ और मुझे लगता है कि वे केवल दिखावा मात्र हैं। महात्माजीने कहा कि मैं पण्डितजीके इस विचारसे पूर्णतः सहमत हूँ। मैं और हकीमजी सम्मेलनमें शरीक होने नहीं, बल्कि आजकी ज्वलन्त समस्याका हल खोज निकालनेके लिए आये हैं। सुना है, 'तंजीम' का कहना है कि यह सम्मेलन सिर्फ हिन्दुओंका सम्मेलन है और मुसलमानोंको उससे अलग रहना चाहिए। मैंने 'तंजीम' के [ इस लेखका ] वह खास अनुच्छेद तो नहीं देखा है, परन्तु मैं आपको बताना चाहता हूँ कि डा० किचलू,

  1. लाहौरके ब्रेडला हॉलमें हुए प्रान्तीय सम्मेलनके ग्यारहवें अधिवेशनमें