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अध्यक्षीय भाषण: पंजाब प्रान्तीय सम्मेलनमें

खिलाफत सम्मेलनके अध्यक्ष डा० अन्सारी, मौलाना मुहम्मद अली और शौकत अली खिलाफत सम्मेलन छोड़कर यहाँ लाहौरमें नेताओंके सम्मेलनमें शरीक होने आये हैं।

महात्माजीने हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच फैली तनातनीके सवालपर आते हुए कहा, इस तनावकी जड़ पंजाबमें ही है। देशके अन्य सभी भागोंके उपद्रवोंका मूल पंजाबमें ही मिल सकता है। इसलिए पंजाबके हिन्दू और मुसलमान जिस दिन एक हो जायेंगे, उसी दिन देश-भर में हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकता कायम हो जायेगी। असहयोग असफल नहीं हुआ है---असहयोगमें असफलता होती ही नहीं---हम लोग तो हिन्दुओं और मुसलमानोंके दंगोंके कारण असफल हुए हैं। मैं तो समझता हूँ कि ये मतभेद न होते तो कौंसिलमें प्रवेशका भी कोई प्रश्न खड़ा न होता। १९२१ में लगता था कि हममें एकता है; लेकिन वह सच्ची एकता नहीं थी। वह एकता तो क्षणिक आवेशके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई थी; और यह बहुत अच्छा हुआ कि आज हमें चुनौती देते हुए यथार्थ हमारे सामने आ गया है।

हकीमजी, डा० अन्सारी और अली भाई खिलाफत सम्मेलनमें शरीक होने नहीं आये हैं। वे प्रान्तीय सम्मेलनमें भाग लेने भी नहीं आये हैं। वे तो यहाँ हिन्दू-मुस्लिम समस्याका कोई हल खोजनेमें सहायता देनेके लिए आये हैं। मेरे पास तो इसका बस एक ही हल है और वह यह है कि एक जाति दूसरेकी सभी राजनीतिक माँगोंको पूरी तरह मान ले। अब यहाँ कोई पूछ सकता है कि सिखों-जैसी एक अल्प-संख्यक जाति हिन्दुओं और मुसलमानोंके हकमें अपने सारे राजनीतिक अधिकार कैसे छोड़ सकती है? मुझे इस बातमें किंचित् भी सन्देह नहीं कि संसारके सामने अहिंसाका अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करनेवाली और अनोखे त्यागका सबूत देनेवाली यह जाति इस त्यागको करनेमें, जो वस्तुतः एक तुच्छ-सा त्याग है, कोई कठिनाई महसूस नहीं करेगी।

लेकिन जब मैं हिन्दुओंसे ही यह हल स्वीकार नहीं करा पाया हूँ तब सिखों और मुसलमानोंके सामने क्या मुँह लेकर ऐसा प्रस्ताव रख सकता हूँ? मैं एक सनातनी हिन्दू हूँ और इस नाते मैं अपने हिन्दू भाइयोंके सामने यह हल रख रहा हूँ। कहा जाता है कि इससे तो हिन्दुओंके साथ बुरी तरह विश्वासघात होगा और मुसलमान तथा सिख हिन्दुओंके इस त्यागका अनुचित लाभ उठायेंगे। मेरा कहना है कि हमें ऐसी विषम स्थितियों का सामना करनेके लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि मैं चाहता हूँ कि आप भी मेरी तरह विश्वास रखें कि विश्वासघातीका ही नाश होगा, विश्वासघातका शिकार बननेवालेका नहीं। हमें बिलकुल बुनियादी बातोंमें किंचित् भी झुकनकी जरूरत नहीं। बल्कि मैं तो आपसे यह कहूँगा कि उनके लिए आप अहिंसा अथवा हिंसाकी तलवार उठाकर संघर्ष करें। प्राचीन कालका एक उदाहरण मैं आपके सामने रखता हूँ। पाण्डवोंने अपना सर्वस्व त्याग दिया था, जिसमें राज्य भी शामिल था; और बदलेमें अपने निर्वाह और निवास-भरके लिए माँग की थी। उन्होंने