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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सर्वस्व त्यागकर भी कुछ खोया नहीं था। गैर-बुनियादी बातोंके बारेमें झुक जाना उचित है--यही कुंजी मैं आपको दे रहा हूँ। इस कुंजीसे समस्त संसारको वशमें किया जा सकता है। गांधीजीने उन बुनियादी बातोंका, जिनके बारेमें झुकना नहीं चाहिए, उल्लेख करते हुए कहा कि यदि मुसलमान आपके मन्दिरोंपर हमला करें, और आपको उनमें पूजा करनेके अधिकारका उपयोग न करने दें तो आप उनसे मृत्युपर्यन्त संघर्ष कर सकते हैं। लेकिन कौंसिलों और नगरपालिकाओंमें तथा नौकरियोंमें ज्यादा स्थान पानेके लिए लड़ना आपके लिए ठीक नहीं है।

मैं एक व्यावहारिक राजनीतिज्ञकी हैसियतसे उन बहादुर पंजाबियोंको सचमुच दयाका पात्र समझता हूँ, जिन्होंने अपनी सहज बुद्धिको तिलांजलि देकर इन छोटी-छोटी चीजों की लड़ाईमें साम्प्रदायिक एकता तककी बलि चढ़ा दी है। मैं तो यहाँ हिन्दुओंसे यही कहने आया हूँ कि आप ईश्वरपर कुछ ज्यादा भरोसा रखें और अपने मनसे भय निकाल दें। आपके सम्मुख अपने मन्दिरोंको और अपनी औरतोंकी आबरूको बचानेका रास्ता यही है कि आप इनके लिए लड़ते हुए जान दे दें और उनको भाग्यके भरोसे छोड़कर भाग न जायें। यदि आप अपनी बहू-बेटियोंकी आबरू बचानेके लिए लड़ते हुए बहादुरीसे जान नहीं दे सकते तो आपके लिए अच्छा यही होगा कि आप अपने आस-पासकी किसी नदीमें डूबकर आत्म-हत्या कर लें। परन्तु जहाँ गैर-बुनियादी या गैर-जरूरी बातोंका सवाल है वहाँ तो समर्पण कर देना हो एकमात्र उपाय है। मुसलमानोंका प्रेम प्राप्त करनेका यही एक रास्ता है। अंग्रेजों और मुसलमानों--दोनोंका गुलाम बननेसे तो मुसलमानोंकी गुलामी स्वीकार करना कहीं अधिक अच्छा है। मेरे अन्तरमें कितनी मर्मान्तक पीड़ा हो रही है, काश मैं आपको यह दिखा पाता। पता नहीं, इस मर्मान्तक पीड़ाकी आगको कौन बुझा सकेगा।

कुछ हिन्दू कहते हैं कि उनको मुसलमानोंने ही हमेशा सताया है। मैं उनके सामने कुछ उदाहरण रखता हूँ। बदायूँ और कुछ अन्य स्थानोंपर हिन्दुओंने भी बदला लेनेकी कोशिश की है। मैंने इसका जो ब्यौरा सुना, उसमें काफी नमक-मिर्च लगाया हुआ था। लेकिन अच्छी तरह पूरी जाँच करानेके बाद मुझे पता लगा है कि बदला लेनेकी कुछ-न-कुछ कार्रवाई तो अवश्य की गई। मैं आपको बता दूँ कि किसी भी हिन्दू शास्त्रमें यह नहीं लिखा है कि यदि मन्दिर तोड़ा जाये तो उसका बदला लेनेके लिए मसजिद तोड़ दी जाये या किसी हिन्दू औरतकी बेइज्जती की जाये तो उसका बदला मुसलमान औरतकी बेइज्जती करके लिया जाये। मैं आपके सामने इन उदाहरणोंको हिन्दुओं और मुसलमानोंकी तनातनी बतानेके लिए नहीं रख रहा हूँ। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि हिन्दू भी बदला लेनेकी कार्रवाई करनेमें पीछे नहीं रहे हैं। परन्तु ये साम्प्रदायिक तनावके प्रमाण नहीं, बल्कि इस बातके सबूत हैं कि इन्सानके अन्दर शैतान मौजूद है। उसे शैतानियतसे नहीं निकाला जा सकता। उसे तो सत्प्रयत्नोंसे ही निकाला जा सकता है।