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भाषण: रावलपिंडीमें

सबको लूटते हैं; इसलिए विश्वासपूर्वक यह कहना मुश्किल है कि यह उपद्रव केवल हिन्दुओं को लूटनेके लिए खड़ा किया गया। लेकिन मैं यह जरूर कहूँगा कि लूटने और माल-मिल्कियत जलानेका काम करनेवाले सरहदके लोग नहीं, बल्कि सरहद के अधिकारी हैं। मैं तो चाहता हूँ कि यह सल्तनत जिस तरह कोहाटमें अपने फर्जको भूल गई उसी तरह हमेशा भूलती रहे। यह सल्तनत बिलकुल बैठ जाये और हिन्दू- मुसलमान एक-दूसरेसे जी भरकर लड़ें और एक-दूसरेको लूटें तो भी मुझे कोई दुःख नहीं होगा। जबतक दोनों कौमोंके दिलमें मैल है, कमजोरी है, कायरता है, तबतक वे आपसमें लड़कर खूनकी नदी बहायेंगी। लेकिन अन्तमें दोनों कौमोंके नेता समझ जायेंगे कि हम अधर्म कर रहे हैं और तब लड़ाई बन्द करके बैठ जायेंगे। लेकिन आज तो हम तीसरी शक्तिका सहारा लेकर लड़ते हैं। यदि हम उसका सहारा लेकर लड़ेंगे तो हमारी किस्मतमें हमेशाके लिए उनकी गुलामी लिखी हुई समझिए। यदि आप हिन्दू-मुस्लिम-एकताके महत्त्वको समझते हों तो इस तीसरी शक्तिका सहारा लेना छोड़ दें। मैं आपसे इतना ही कहता हूँ कि अगर सरकार आपके ऊपर गुस्सा दिखाये और मुसलमानोंकी ही मदद करे तो आप रामका नाम लेते हुए मर मिटिए। आज तो सरकारी अधिकारी आपको ये ताने देते हैं कि "शौकत अलीके पास जाओ", " गांधी के पास जाओ।" मुझे दुःख है कि आज हम कुछ कर नहीं सकते, क्योंकि हमारे पास तलवार नहीं है। मैंने तलवार फेंक दी है और शौकत अलीने म्यानमें रख ली है। अतः हमें आपको इतनी ही सलाह देनी है कि यदि आपको स्वराज्य लेना हो तो आप आजाद-दिल बनें। इन्सान अपनेको आप ही मिटा सकता है, उसे कोई दूसरा इन्सान नहीं मिटा सकता। आप कहेंगे कि इस सलाहका परिणाम तो बरबादी ही होगा, इससे मदद क्या मिली तो मैं कहूँगा कि मैं तो बरबाद होनेकी, कुर्बानी करनेकी ही बातें करता हूँ।

सरहदके हिन्दुओंसे मैं यह कहूँगा कि जहाँकी ९५ प्रतिशत आबादी मुसलमान है, वहाँ वे सरकारकी सलाहपर कदापि वापस न जायें।[१] अगर जायें तो उसी स्थितिमें जायें, जब सरहदके मुसलमान उनसे अनुरोध करें, उनकी इज्जत-आबरू रखने और हमेशा उनकी रक्षा करनेका आश्वासन देकर उन्हें वापस ले जाना चाहें। आप वहाँ कई पीढ़ियोंसे रहते आये हैं। उन लोगोंको मनाये बिना आप वहाँ कैसे रह सकेंगे? आपने वहाँ कमाई की है, दुकानें खोल रखी हैं। उनके साथ सलाह-मसलहत किये बिना आप वहाँ सुख और शान्तिसे कैसे रह सकेंगे? सरकार किसी भी बड़ी कौमके विरुद्ध संरक्षण नहीं दे सकती। यदि हमें स्वराज्य मिल जाये और शौकत अली कमान्डर-इन-चीफ तथा मैं वाइसराय हो जाऊँ और मुझसे कोई यह कहे कि आप एक कौमकी रक्षा करें तो मैं भी यहीं कहूँगा कि ९५ प्रतिशत आबादीवाली कौमसे मैं आपकी रक्षा नहीं कर सकता। जहाँ मुसलमान ५ प्रतिशत होंगे, वहाँ मैं उनसे भी यही बात कहूँगा। सरहदमें इज्जत और मुहब्बतसे रहनेका एकमात्र रास्ता यही है।

  1. मूलमें यह वाक्य जैसा है, उसके अनुसार इसका अनुवाद होगा "वहाँ ये सरकारकी सलाह लेने कदापि न जायें", किन्तु सन्दर्भको देखते हुए उक्त अनुवाद ठीक प्रतीत होता है।