पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं जानेसे पहले आपसे इतना और कहना चाहता हूँ कि यदि आप अपनी रक्षा करना चाहते हैं तो आप सरकारसे कहें कि जबतक मुसलमानोंके साथ हमारा निबटारा नहीं हो जाता, जबतक मुसलमान हमें बुलाकर नहीं ले जाते तबतक हम यहाँसे हिलनेवाले नहीं हैं। यदि कोहाटी लोग मेरी यह सलाह माननेके लिए तैयार हों तो मैं उनसे यह खुला करार करता हूँ कि "बेलगाँव कांग्रेसके बाद मैं यहाँ आकर कोहाटियोंके बीच जमकर रहनेके लिए तैयार हूँ, [ उनके उद्देश्य को लेकर ] सारे हिन्दुस्तानका दौरा करनेके लिए तैयार हूँ। लेकिन यदि वे सरकारके कहनेसे कोहाट जायेंगे तो यह उनके लिए और हिन्दू तथा मुसलमान, दोनोंके लिए भारी हानिकारक बात है। यदि सरकार उनकी सारी माल-मिल्कियत उन्हें दिला दे और तीन करोड़की क्षतिपूर्ति कर दे तो भी उससे रक्षाका आश्वासन लेकर वहाँ जानेमें हिन्दू और मुसलमान दोनोंका नुकसान है। यदि आप मेरी सलाहके बावजूद वहाँ जायेंगे तो कांग्रेसमें भी मेरा काम मुश्किल हो जायेगा। ईश्वर आपको मुसलमानोंके साथ एकतासे रहने की शक्ति दे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १४-१२-१९२४

३४८. मेरी पंजाब-यात्रा

इच्छासे नहीं

अपनी इच्छासे नहीं बल्कि आवश्यकतावश मैंने पंजाब प्रान्तीय सम्मेलनका सभापति होना स्वीकार किया।[१]पंजाबी किसी बाहरके आदमीको और यदि सम्भव हो तो मौलाना अबुल कलाम आजादको सभापति बनाना चाहते थे। मौलाना साहब इसके लिए राजी न थे। उनका कहना था कि मैं परिषद् में सहर्ष हाजिर हो जाऊँगा। परन्तु मैं समझता हूँ कि मैं अलग रहकर अधिक उपयोगी हो सकूँगा। मौलानाकी बात लोगों की समझमें आ गई। उसके बाद पण्डित मोतीलालजीसे अनुरोध किया गया। उन्होंने कहा कि यदि कोई खास बाधा न हुई तो मैं सभापतिका स्थान ग्रहण कर सकूँगा और यदि पण्डित मोतीलालजी सभापति होनेमें असमर्थ रहें तो सभापति-पदका भार मेरे सिर डाला जानेवाला था। बदकिस्मतीसे, एक अनपेक्षित घटना हो गई जिससे वे न आ सके। इसके जो कारण उन्होंने बतलाये हैं, वे सार्वजनिक महत्त्वके हैं, इसलिए मैं उन्हें उन्हींके शब्दोंमें यहाँ देता हूँ।

जी ऊब उठा

लालाजी के पास भेजे हुए पत्रमें वे लिखते हैं:

"पंजाब प्रान्तीय सम्मेलनके सभापति पदकी मेरी स्वीकृतिके सम्बन्धमें काफी गलतफहमी पैदा हो गई है। मैं और महात्माजी दोनों इस बातमें सहमत

  1. देखिए "अध्यक्षीय भाषण: पंजाब प्रान्तीय सम्मेलनमें", ७-१२-१९२४।