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भेंट: 'ट्रिब्यून' के प्रतिनिधिसे

आगे जब प्रतिनिधिने हालके पंजाब प्रान्तीय राजनीतिक सम्मेलनमें गांधीजी द्वारा स्वराज्य प्राप्त करनेकी नई योजनाके सम्बन्धमें कहीं बातोंका आशय तथा महत्त्व जानना चाहा तो गांधीजीने कहा:

सम्मेलनके अपने समापन भाषणका विवरण अभी मैंने समाचारपत्रोंमें नहीं देखा है; लेकिन मैंने यह जरूर कहा था कि मैं इस बारेमें बहुत अधिक और गहराईसे विचार कर रहा हूँ और यह मालूम करनेकी कोशिश कर रहा हूँ कि क्या हममें से कमसे-कम कुछ लोग ऐसे नहीं निकल सकते जो इस यंत्रणाको समाप्त कर सकें। वह योजना क्या हो सकती है, यह मैं अभी नहीं कह सकता और फिर हर चीज इस बातपर निर्भर करेगी कि मैं जो भी प्रस्ताव रखूँ, उसपर कांग्रेसकी प्रतिक्रिया क्या होती है। मैं अभीतक अन्धकारमें हूँ और मुझे अभी इस सम्बन्धमें गम्भीर सन्देह है कि मैं देशको अपने साथ ले जा सकूँगा। फिलहाल मैं इससे अधिक कुछ नहीं कह सकता। लेकिन मेरे मनमें इस सम्बन्धमें कोई सन्देह नहीं है कि मैं अब इसके बारेमें जिस निष्कर्षपर भी पहुँचूँगा, वह कमसे कम मेरे लिए तो अन्तिम होगा।

गांधीजीने अपने निकट भविष्यके कार्यक्रमके बारेमें पूछनेपर कहा:

मैं शनिवार की सुबह साबरमती पहुँचूँगा और वहाँसे १८ को चलकर २० को बेलगाँव पहुँच जाऊँगा। आशा है, मैं वहाँ आये हुए सभी अपरिवर्तनवादियोंसे मिलूँगा और फिर २१ को वहाँ जो भी परिवर्तनवादी आयेंगे उनसे मिलूँगा। मैं सभी नेताओं और कार्यकर्ताओंसे खुलकर और अनौपचारिक रूपसे पूरी चर्चा करनेके लिए अत्यन्त उत्सुक हूँ। मुझे सबसे ज्यादा चिन्ता इस बातकी है कि कांग्रेसमें जो-कुछ भी स्वीकार किया जाये, वह यन्त्रवत् स्वीकार न किया जाये; बल्कि हर प्रतिनिधि कांग्रेसके सामने पेश किये जानेवाले प्रस्तावोंको पूरी तौरसे समझकर अपना दायित्व महसूस करते हुए पूरा इत्मीनान करके ही अपनी सहमति दे। किसी भी कार्यक्रमकी सफलताका दारोमदार इसी बातपर है कि हर व्यक्ति उसके लिए जी-जानसे जुटकर काम करे।

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रिब्यून, १३-१२-१९२४