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३५३. प्रस्तावना: 'श्री रामकृष्णकी जीवनी' की

साबरमती[१]मार्गशीर्ष कृष्ण १, १९८१ [१२ दिसम्बर, १९२४][२]

रामकृष्ण परमहंसकी जीवनी धर्मके आचरणकी कथा है। उनका जीवन हमें ईश्वरका स्पष्ट साक्षात्कार करनेमें समर्थ बनाता है। उनकी जीवन-कथा पढ़नेवाले किसी भी मनुष्यको यह विश्वास हुए बिना नहीं रह सकता कि ईश्वर ही सत्य है, शेष सब मिथ्या है। रामकृष्ण प्रभु-भक्तिकी जीती-जागती प्रतिमूर्ति थे। उनके वचन एक विद्वान्की उक्तियाँ मात्र नहीं हैं; वे जीवन रूपी पुस्तकके पृष्ठ हैं। उनमें उनके अपने अनुभव अभिव्यक्त हुए हैं। इसलिए वे पाठकपर ऐसी छाप डालते हैं, जिससे वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। अनास्थाके इस युगमें, रामकृष्णने ज्वलन्त और प्राणवन्त आस्थाका एक ऐसा उदाहरण रखा है, जिससे लाखों स्त्री-पुरुषोंको शान्ति मिली है। यदि वह उदाहरण उनके सम्मुख न आता तो वे जीवन-भर आध्यात्मिक प्रकाशसे वंचित ही रह जाते। रामकृष्णका जीवन अहिंसाका एक वस्तु पाठ है। उनका प्रेम भौगोलिक या अन्य किन्हीं भी सीमाओंमें बँधा हुआ नहीं था। ईश्वर करे, इन पृष्ठोंको पढ़नेवाले सभी पाठकोंको उनका यह दिव्य प्रेम प्रेरणास्पद हो।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
लाइफ ऑफ श्री रामकृष्ण

३५४. पाटीदार और अन्त्यज

मुझे पाटीदारोंके विरुद्ध अन्त्यज भाइयोंकी शिकायतें मिलती ही रहती हैं। एक भाईने मुझे कुछ कतरनें भेजी हैं, जिनमें नाम-धाम सहित पूरा-पूरा विवरण दिया गया है। उनसे पता चलता है कि जिन अन्त्यजोंने कई वर्षोंसे मरे हुए पशुओंको उठानेका काम छोड़ दिया था, उनसे मार-पीटकर यह काम करवाया गया है।

यदि यह बात सच हो तो यह स्वदेशी डायरशाही मानी जायेगी और किसी हदतक विदेशी डायरशाहीसे भी अधिक बुरी। विदेशी डायरशाही के पीछे तो लोगोंके दोषका कुछ बहाना भी था। इसमें तो वैसी कोई बात नहीं मिल सकती। विदेशियोंकी संख्या बहुत ही कम है, इसलिए उनको सामान्य रूपसे भय भी रहता

  1. साधन-सूत्र यही दिया गया है; लेकिन गांधीजी १३ दिसम्बरको साबरमती पहुँचे थे; देखिए "पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको", १४-१२-१९२४।
  2. साधन-सूत्रमें "१२ नवम्बर, १९२४ तिथि दो हुई है।