पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५९
पाटीदार और अन्त्यज

है। लेकिन इस स्वदेशी डायरशाहीमें तो पाटीदार बहुत ज्यादा और अन्त्यज संख्यामें कम एवं बल और बुद्धिमें हीन भी है। उनपर जुल्म किया जाये, यह तो चींटियों पर सेना लेकर चढ़ाई करनेके समान है।

पाटीदारों और अन्य तथाकथित उच्च वर्णोंको अपने कर्त्तव्यपर विचार करना है। किसीकी डायरशाही अब लम्बे समयतक चलनेवाली नहीं है। अब तो केवल सत्य, न्याय और अहिंसा ही चलेंगे। अन्याय, असत्य और हिंसा---चाहे वे स्वदेशी ही क्यों न हों---कदापि नहीं चल सकते।

आज हम न्यायकी माँग कर रहे हैं, गुलामीसे मुक्त होनेकी कामना कर रहे हैं। क्या हम स्वयं अपने दोष नहीं देखेंगे, उनको दूर नहीं करेंगे? जिन पाटीदारोंने अन्त्यज भाइयोंपर जुल्म किया हो, समझदार पाटीदारोंको उन्हें रोकना चाहिए। अन्त्यज भाइयोंके प्रति भी हमारा कुछ कर्त्तव्य है, लोगोंको यह बात समझनी चाहिए। जिस तरह अन्य वर्णोंके लोगोंने अपने धन्धे छोड़ दिये हैं, जिस तरह ब्राह्मणोंने शिक्षण-कार्यं छोड़कर नौकरी आदि अपनाई है, जिस तरह क्षत्रियोंने दासता ग्रहण की है, जिस तरह दर्जियोंने अपना काम छोड़कर अन्य क्षेत्रोंमें प्रवेश किया है, उसी तरह अन्त्यजोंको भी अपने धन्धे छोड़नेका अधिकार है।

चमारका धन्धा आज दूसरे लोग भी करते हैं। मरे हुए पशुओंको उठाकर उचित स्थानपर डाल देनेके काममें मैं कोई दोष नहीं देखता। लेकिन दूसरोंको मैं वह काम अथवा कोई और काम करनेके लिए बाध्य कैसे कर सकता हूँ? अमुक धन्धा तो अमुक जाति अथवा व्यक्तिको ही करना होगा, हम ऐसा दुराग्रह नहीं रख सकते। इसका एक सीधा परिणाम तो यह होना चाहिए कि हमें कोई भी बुनियादी और जरूरी काम करनेमें दोष नहीं समझना चाहिए। इसके अतिरिक्त जब कोई दूसरे लोग इस कामको करनेके लिए बाध्य नहीं हैं तो फिर अन्त्यजोंने ही क्या अपराध किया है [ कि उन्हींसे यह काम कराया जाये ]? मुझे याद है कि दक्षिणमें एक बार भंगी नाराज हो गये थे और उन्होंने अपना काम बन्द कर दिया था। किन्तु ब्राह्मणोंने अपने पाखाने आप ही साफ करना शुरू कर दिया, इससे भंगी हार गये। दूसरोंको पराजित करनेका यही उत्तम मार्ग है: कठिनाइयोंको चुपचाप झेलना और उन्हें आत्मबल और सहिष्णुताके द्वारा दूर करना। इस रास्तेपर चलनेमें दोनोंकी उन्नति है। पहले रास्तेपर चलनेसे एककी अवनति तो निश्चित ही है, किन्तु हो सकता है, दोनोंकी ही अवनति हो।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, १४-१२-१९२४