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३५५. पत्र: ए० वरदन्‌को

१४ दिसम्बर, १९२४

प्रिय मित्र,

आपके पत्रके साथ भेजी गई क्षमा-याचनाके लिए, जिसपर श्री सुब्रह्मण्यम्के दस्तखत हैं, धन्यवाद। मैंने इस बातका कभी विचार नहीं किया है। आशा है, इन पत्रोंको लिखनेके कारण उनको सेवासे निवृत्त नहीं किया जायेगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

श्री ए० वरदत्
प्रधानाध्यापक

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ५६७६) की फोटो-नकलसे।

३५६. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको

रविवार, मार्गशीर्ष बदी ३ [१४ दिसम्बर, १९२४]

सुज्ञ भाईश्री,

आपका पत्र लाहौरसे होता हुआ आज मिला। मैंने सोचा कि यदि मैं अब तार देता हूँ तो वह भी आपको कल ही मिलेगा, इसलिए पत्र द्वारा ही उत्तर दे रहा हूँ। क्या अब यही उचित नहीं होगा कि परिषद्को[१] सोनगढ़ में ही होने दिया जाये? फिर भी आप वही करें जिससे सबका हित हो। परिषद् में संयमसे काम लिया जायेगा; इस बारेमें भला मैं आपको क्या आश्वासन दे सकता हूँ? मेरी उपस्थिति में कमसे-कम काठियावाड़में कोई भी व्यक्ति मर्यादा नहीं छोड़ेगा, इस बातका मुझे पक्का भरोसा है। समाचारपत्रोंसे विदित होता है कि नगरपालिका मानपत्र देनेका प्रस्ताव पास कर चुकी है। क्या अब उसमें कोई परिवर्तन किया जाना चाहिए? मुझे लगता है कि यह कार्यक्रम तो निर्विघ्न सम्पन्न हो जायेगा। मैं यहाँ १८ तारीख तक हूँ। यदि कोई शहर जानेवाला व्यक्ति मिल गया तो मैं आपको तार भी दूँगा।

मोहनदास गांधी वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१८४) से। सौजन्य: महेश पट्टणी।

  1. काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् देखिए "पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको", १८-१२-१९२४।