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३५७. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

मार्गशीर्ष बदी ३ [१४ दिसम्बर, १९२४][१]

मैं कल पहुँचा। तुम्हें पत्र लिखने ही जा रहा था कि महादेवने मुझे तुम्हारा पत्र ला दिखाया। आनन्दकी तबीयत अभीतक ठीक नहीं हुई है इससे दुःख और आश्चर्य हो रहा है। इस सबका कारण क्या है? आनन्दसे कहना कि अभी संसारसे विदा लेने की तैयारी न करे। क्या वह वायु परिवर्तनकी बात नहीं मानेगा? मैंने सदा देखा है कि एक वायु परिवर्तनके आगे सौ दवा भी काम नहीं करती। ऐसी स्थितिमें तुम बेलगाँव कैसे आ सकोगे? मैं तो तुम्हें बेलगाँव आनेके बारेमें ही पत्र लिखना चाहता था। तारामती अब बिलकुल ठीक होगी।

[गुजराती से]
बापुनी प्रसादी

३५८. वक्तव्य: समाचारपत्रोंको[२]

अहमदाबाद
१४ दिसम्बर, १९२४

मैंने पंजाबमें दिये अपने एक भाषणका विवरण देखा है और अपने अन्य भाषणोंके विवरणोंके बारेमें बहुत-कुछ सुना है। मैंने संवाददाताओंको चेतावनी दी थी कि वे मेरे भाषणोंके सम्बन्धमें तैयार किये गये विवरण मुझे दिखाए बिना छपनेके लिए न भेजें। मैंने जो बातें कहीं, वे मेरी दृष्टिमें महत्त्वपूर्ण थीं। 'ट्रिब्यून' और और 'जमींदार' के सम्पादकोंने अपने विवरण शुद्ध करनेके लिए मेरे या मेरे सचिवके पास भेजनेका सौजन्य दिखाया; लेकिन स्पष्ट है कि अन्य सम्पादकोंने मेरे अनुरोध-पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। नतीजा यह है कि मैंने जो कुछ कहा अन्य सम्पादकोंने मेरे वह विकृत रूपमें छापा गया है। इसलिए मैं लोगोंसे यही कह सकता हूँ कि मेरे भाषणोंके विवरण, जबतक मेरे द्वारा प्रमाणित किये हुए न हों तबतक उनका एक भी शब्द मेरा न मानें। शेषके लिए लोगोंको मेरे बेलगाँवके भाषणकी राह देखनी चाहिए। उसमें मैं संक्षेपमें उन सभी बातोंको रखूँगा, जो मैंने पंजाबमें और अन्यत्र कहीं हैं। मैं लोगोंको आगाह किये देता हूँ कि अभी वे मुझसे किसी सनसनीदार और जोश पैदा करनेवाली योजनाकी आशा न करें। अभी तो मेरी सबसे बड़ी इच्छा यह है कि एकता कायम हो और एक वर्षतक रचनात्मक कार्य होता रहे। उसके बाद और केवल उसके बाद ही मैं कोई ऐसी चीज देने का वादा कर सकता हूँ जो उत्साहीसे-

  1. साधन-सूत्रके अनुसार।
  2. यह वक्तव्य गांधीजीने अपने पंजाबके भाषणोंके सम्बन्धमें दिया था।