यदि वे ऐसी शर्तोंके साथ परिषद्का आयोजन करनेको राजी हों तो मुझे लगता है कि अनुमति देनेमें किसी प्रकारकी अड़चन न होनी चाहिए। अनुमतिके आदेश-पत्रमें यदि शर्तें भी लिख दी जायें तो इससे दरबारके मानकी रक्षा भी हो जायेगी। अब और अन्य राजाओंके प्रति दरबारका कर्त्तव्य भी पूरा हो जायेगा तथा जनताको परिषद् बुलानेकी सुविधा हो जायेगी। मेरा खयाल यह है कि निषेधादेश परिषद् में मर्यादा-पालन न किये जानेके भयसे ही जारी किया गया है। यदि इस भयको दूर करनेके लिए आवश्यक शर्तें दाखिल कर दी जायें तो मुझे लगता है कि फिर कोई अड़चन नहीं रह जाती।
आपका,
मोहनदास गांधी
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१८५) से।
सौजन्य: महेश पट्टणी
३६१. पत्र: भगवानजी अनूपचन्द मोदीको
मार्गशीर्ष बदी ५ [ १६ दिसम्बर, १९२४ ][१]
आपका पत्र मिला। आपने पत्र लिखा सो अच्छा किया। उसमें से जितना स्वीकार कर सकता हूँ, करूँगा।
मोहनदास गांधी वन्देमातरम्
राजकोट
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३०३१) से।
सौजन्य: नारणदास गांधी
३६२. सन्देश: देवचन्द पारेखको
[ १६ दिसम्बर, १९२४ के पश्चात् ][२]
मुझे पता चला है कि काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्का स्वागत-मण्डल दरबारको इस बातका आश्वासन देनेको तैयार है कि परिषद् में शिष्टता तथा मर्यादाका पालन होगा और राजाओंकी व्यक्तिगत टीका न की जायेगी।
यह भी मालूम हुआ है कि पोरबन्दरमें कार्यकारी समितिकी जो बैठक हुई थी उसने स्वागत-मण्डलको भावनगरमें परिषद् बुलाने की सलाह दी थी। इससे पहले उसे