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३६५. पत्र: 'फारवर्ड' को

[ १७ दिसम्बर, १९२४ के आसपास ][१]

यह रहा मेरा लेख: चरखे बिना स्वराज्य असम्भव है। मैं अपनी कोई तसवीर रखता नहीं। अतः आपको मेरे हस्ताक्षरोंसे ही सन्तोष करना पड़ेगा।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
द स्टोरी ऑफ माई लाइफ, खण्ड २।

३६६. टिप्पणियाँ

क्या लालाजी भीरु हैं?

आम सभाओंमें बोलनेवाले बहुत-से लोगोंकी यह बदकिस्मती है कि संवाददाता अकसर उनके भाषणोंकी गलत रिपोर्ट भेज देते हैं, हालाँकि वे कोई जान-बूझकर ऐसा नहीं करते। मेरा खयाल है, इस बदकिस्मतीका शिकार मैं भी हूँ। मुझे याद है, सन् १८९६ में जब मैं भारतमें पहले-पहल सार्वजनिक सभामें बोलने जा रहा था, उस समय सर फिरोजशाह मेहताने मुझसे कहा था कि अगर आप चाहते हों कि लोग आपका भाषण सुनें और उसकी ठीक-ठीक रिपोर्ट भी दी जाये तो अपना भाषण पहलेसे ही लिख रखिए। इस नेक सलाहके लिए मैं बराबर उनका आभारी रहा। मैं जानता हूँ कि यदि उस सभाके सम्बन्धमें मैं उनकी बात मानकर न चलता तो पूरा रंगभंग हो गया होता। उसके बाद भी जब कभी मेरे भाषणकी गलत रिपोर्ट दी गई है, मुझे इस प्रान्तके उस बेताज बादशाहकी सलाह याद हो आई है। कहते हैं, किसीने ऐसी खबर दी है कि अमृतसरके खिलाफत सम्मेलनमें मैंने लालाजीके लिए भीरू शब्दका प्रयोग किया। लालाजी और चाहे जो हों, भीरु तो हैं ही नहीं। मेरे भाषणका सन्दर्भ देखनेसे स्पष्ट हो जायेगा कि मैं इस आरोपसे लालाजीका बचाव कर रहा था कि वे मुसलमानों के प्रति विरोध-भाव रखते हैं। उस समय मैंने जो कहा था वह यह कि लालाजी शंकाशील हैं और मुसलमानोंके मंशामें शक करते हैं, किन्तु साथ ही वे सच्चे दिलसे मुसलमानोंकी मैत्री चाहते हैं। मैं साफ कह देना चाहता हूँ कि लालाजीके लिए मेरे दिलमें बड़ी इज्जत है। मैं उन्हें बहुत बहादुर और आत्म-त्यागी व्यक्ति समझता हूँ। और उदार, सत्यपरायण और ईश्वरसे डरकर चलनेवाला आदमी समझता हूँ। उनकी

  1. साधन-सूत्र के अनुसार।