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देश-भक्ति अत्यन्त निर्मल है। देशकी उन्होंने जितनी और जैसी अच्छी सेवा की है, उसमें बहुत कम लोग बराबरी कर सकते हैं। और यदि ऐसे व्यक्तिपर बुरा मंशा रखनेका सन्देह किया जाये तब तो हमें हिन्दू-मुस्लिम एकताकी आशा छोड़ ही देनी पड़ेगी। यदि अली-बन्धुओंके मंशा में लोग शक करने लगे तो क्या हिन्दू-मुस्लिम एकता की कोई आशा की जा सकती है? यहाँ भी स्थिति वैसी ही है। हम सबकी अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं, अपने-अपने पूर्वग्रह हैं। तो हम हिन्दुओं और मुसलमानोंको, जैसे हम हैं उसी रूपमें स्वीकार किया जाना चाहिए और जिन लोगोंके लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता धर्म-रूप है उन्हें इसी साधन-सम्पत्तिके द्वारा, इन्हीं गुण-दोषमय हिन्दुओं और मुसलमानोंके द्वारा यह एकता स्थापित करनेकी कोशिश करनी चाहिए। अपने औजारोंको दोष देनेवाला बढ़ई असफल बढ़ई है। कर्नल मैडॉकने मुझे बताया कि एक बार उन्होंने आम इस्तेमालके एक मामूली-से चाकूसे बहुत बड़ा ऑपरेशन किया था, क्योंकि उस समय और कोई चाकू उनके पास नहीं था। कीटाणु-नाशक-पदार्थके नामपर उनके पास सिर्फ उबलता हुआ पानी था। लेकिन उन्होंने हिम्मत की और उनके मरीजकी जान बच गई। अगर हम भी एक-दूसरेपर विश्वास करनेका साहस दिखायें तो समझ लीजिए हम सुरक्षित हैं। लेकिन एक-दूसरेका विश्वास करनेका मतलब जबानसे विश्वास प्रकट करना और मनमें अविश्वास रखना नहीं हो सकता। यह तो सचमुच कायरता होगी; और कायरोंसे कायरोंकी अथवा कायरोंसे बहादुरोंकी दोस्ती कभी नहीं हो सकती।

हत्या कब उचित है?

दिल्ली-निवासी लाला शंकरलालने मुझे बताया है कि ऐसी खबर है कि मैंने हिन्दुओंको कुछ मौकोंपर मुसलमानोंकी हत्या करने की सलाह दी है। उदाहरणके लिए जब मुसलमान गो-हत्या कर रहे हों। मैंने यह खबर खुद कहीं नहीं पढ़ी है। लेकिन चूँकि बात बहुत महत्त्वपूर्ण है इसलिए मुझे इस सम्बन्धमें अपनी बात बहुत सावधानीके साथ सूक्ष्मतापूर्वक और निश्चित रूपसे कहना जरूरी है। मैं मानता हूँ कि सारी दुनिया या मुसलमानोंसे गायकी रक्षा करना हिन्दू-धर्मका अंग नहीं है। अगर कोई हिन्दू ऐसी कोई कोशिश करता है तो वह दूसरोंपर जबरदस्ती अपना विचार लादनेका दोषी माना जायेगा। उसका कर्तव्य तो सिर्फ यह है कि वह अच्छी तरह प्रेमपूर्वक गायकी देखभाल करे। प्रसंगवश मैं कह दूँ कि इस कर्त्तव्यका पालन वह बिलकुल नहीं करता। हिन्दू लोग जिस तरीकेसे सारी दुनियाको गो-रक्षाके लिए राजी कर सकते हैं वह तरीका सिर्फ यही है। गो-रक्षा और उसमें जो कुछ समाया हुआ है उसे वे अपने आचरणमें उतारकर दुनियाको दिखायें। लेकिन, यह तो हर व्यक्तिका और इसलिए हर हिन्दूका कर्त्तव्य है कि वह अपनी माँ, बहन, पत्नी या बेटी, बल्कि जो भी एकमात्र या विशेष रूपसे उसीके संरक्षणमें हो ऐसे हर किसीकी, अपने प्राणोंकी बलि देकर भी रक्षा करें। मेरा धर्म तो मुझे सिखाता है कि मैं दूसरोंकी रक्षाके लिए किसीकी हत्या करनेका प्रयत्न किये बिना अपना जीवन बलिदान कर दूँ। लेकिन, साथ ही मेरा धर्म मुझे यह कहने की भी प्रेरणा देता है कि जहाँ अपने संरक्षितकी उपेक्षा करके भाग खड़े होने और जो बलात्कार