पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सदस्यताकी शर्तमें क्रान्तिकारी परिवर्तन करनेकी कोशिश हो रही है। यदि कांग्रेसने उसे स्वीकार कर लिया तो उसको कार्य रूप देने के लिए नियम भी बनाने पड़ेंगे। कुछ और भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन मैं विषय समितिके विचारार्थ पेश करना चाहता हूँ। कुछ नये सम्मेलन भी इसके साथ हो रहे हैं---जैसे नेशनल होमरूल कान्फ्रेंस और अब्राह्मण कान्फ्रेंस। इसलिए हर दृष्टिसे यह जरूरी है कि अधिवेशनमें सभी प्रतिनिधि शामिल हों और महत्त्वपूर्ण परिवर्तनोंके शुभारम्भमें योग-दान करें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-१२-१९२४

३६७. कोहाटका दुष्काण्ड

कोहाटके दुष्काण्डपर भारत सरकारने परदा डाल दिया है। उसने तो पण्डित मालवीयजीको वाइसराय द्वारा दिये गये उत्तरमें ही जनताको इस बातका आभास दे दिया था कि वह कोई वैसा ही फतवा देनेवाली है जैसा कि आज देशके सामने है। यह सरकारी निर्णय जिस प्रकार एक राष्ट्रके रूपमें हमारी निर्वीर्यताका प्रमाण हैं, उसी प्रकार इस बातका भी सबूत है कि सरकारकी मनमानीको चुनौती देनेवाला कोई नहीं है और उसे जनमतकी तनिक भी परवाह नहीं है। मेरे लेखे तो कोहाट- दुष्काण्डका जितना बड़ा कारण वहाँके प्रशासकोंकी अयोग्यता और अक्षमता है उतना बड़ा कारण हिन्दू-मुस्लिम तनाव नहीं है। यदि उन्होंने जान-मालकी हिफाजतका अपना बुनियादी फर्ज अदा किया होता तो जो ध्वंस-लीला दिन-दहाड़े शुरू हुई और चलती रही, उसे आसानीसे रोका जा सकता था। लेकिन, अधिकारीगण नीरोकी तरह सब-कुछ देखते रहे; मोद मनाते रहे और उधर 'रोम' जलता रहा। वे ऐसा नहीं कह सकते कि वे असहाय थे। उनके पास इस आगका शमन करनेके लिए पर्याप्त साधन थे। अगर वे चुप बैठे हैं तो अपने ही अपराधपूर्ण, उपेक्षा-भाव और निष्ठुरताके कारण चुप बैठे हैं; उनके कर्त्तव्य-पालनके रास्तेमें दूसरी कोई बाधा थी ही नहीं।

अब भारत सरकार भी उनके अपराधकी सहभागी बन गई है; उसने स्थानीय अधिकारियोंकी करनीपर लीपापोती कर दी है, बल्कि उनकी उपेक्षाको या उपेक्षासे भी बदतर आचरणको "धैर्य और साहस करार" दिया है।

अपेक्षा तो यही की जा सकती थी कि इस मामलेकी पूरी, खुली और स्वतंत्र जाँच कराई जायेगी। लेकिन विभागीय जाँचके अलावा और कुछ नहीं किया गया और जाँच करनेवालोंमें जनताका कोई भी प्रतिनिधि नहीं रखा गया। इस जाँचके निष्कर्षोपर जनताको तनिक भी विश्वास नहीं हो सकता। मैं और मेरे मुसलमान सहयोगियोंने राय बहादुर सरदार माखनसिंहसे लेकर मामूलीसे मामूली शरणार्थियों तकसे बातचीत की। सबने यह तो स्वीकार किया कि लाला जीवनदासने एक पर्चा प्रकाशित किया था जिसमें बहुत ही अपमानजनक पद्य छपे हुए थे, किन्तु साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि हिन्दुओंने उसके प्रकाशनके लिए काफी प्रायश्चित्त किया और