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कोहाटका दुष्काण्ड

जब मुसलमानोंने ध्वंस-लीला शुरू कर दी तब ही हिन्दुओंने आत्मरक्षामें गोलियाँ चलाईं। कोहाटके मुसलमानोंकी ओरसे यह कहा गया कि पर्चेके सम्बन्धमें हिन्दुओंने अपनी भूलका पर्याप्त परिमार्जन नहीं किया और हिन्दुओं द्वारा गोलियाँ चलाने और मुसलमानोंकी जान लेने के बाद ही मुसलमानोंने ध्वंसात्मक कार्रवाई और गोलियाँ चलाना शुरू किया। चूँकि कोई कोहाटी मुसलमान रावलपिंडी नहीं आया था, इसलिए दुर्भाग्यवश हमें इस सम्बन्धमें सत्यका पता नहीं चल पाया। अतः, यह कहना कठिन है कि सरकारने जिस तरह दोनों सम्प्रदायोंके लोगोंके बीच दोषका बँटवारा किया है वह गलत है। लेकिन जाँचके निष्कर्षको कोई निष्पक्ष या स्वीकार्य निर्णय नहीं माना जा सकता। कोहाटके हिन्दुओंसे इस निष्कर्षको स्वीकार करने या इसके सामने सिर झुका देने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। और न कोहाटके मुसलमानोंको ही सिर्फ इस कारणसे कि यह निष्कर्ष उनके पक्षमें जान पड़ता है, इससे सन्तोष मिल सकता है। कारण, मुसलमान यदि सिर्फ इसलिए भारत सरकारके इस निष्कर्षपर हर्ष प्रकट करते हैं कि अभी इससे मुसलमानोंकी बातका समर्थन होता दीखता है तो यह गलत होगा। इस मामलेमें तो कोई भी निष्कर्ष संतोषजनक तभी माना जा सकता है जब वह ऐसे हिन्दुओं और मुसलमानों द्वारा निकाला गया संयुक्त निष्कर्ष हो जिनकी निष्पक्षतामें सन्देहको तनिक भी गुंजाइश न हो। इसलिए भारत सरकारका यह फतवा दोनों जातियोंके लिए चुनौती है। इसमें हिन्दू शरणार्थियोंसे अपमानजनक परिस्थितियोंमें रहनेका मूल्य चुकाकर कोहाट लौट जाने को कहा गया है और मुसलमानोंको अपने हिन्दू भाइयोंका अपमान करनेके लिए बढ़ावा दिया गया है। आशा है, हिन्दू कोहाटमें अपमान सहकर अमीरीकी जिन्दगी बितानेके बजाय कोहाटसे बाहर सम्मानके साथ फकीरीकी जिन्दगी बिताना ज्यादा पसन्द करेंगे। मुझे आशा है कि मुसलमान भाई भी सरकार द्वारा दिये गये प्रलोभनको ठुकरा देनेकी मर्दानगी दिखायेंगे और अपने हिन्दू भाइयोंको, जिनकी संख्या कोहाटमें बहुत ही कम है, अपमानित करनेमें शरीक नहीं होंगे। प्रारम्भमें चाहे जिसने भी गलती की हो, जिसने भी उत्तेजनका कारण प्रस्तुत किया हो, इस तथ्यको कोई झुठला नहीं सकता कि हिन्दुओंको लगभग जबरदस्ती कोहाटसे निकाल बाहर किया गया। इसलिए यह काम अब मुसलमानोंका है कि वे रावलपिंडी जायें और हिन्दुओंको मैत्री तथा जान-मालकी सुरक्षाका आश्वासन दिलाकर उन्हें कोहाट वापस ले आयें। और कोहाटसे बाहरके हिन्दुओंको भी ऐसा आचरण करना चाहिए जिससे मुसलमान लोग ऐसा रवैया अपना सकें। कोहाटसे बाहरके मुसलमानों को कोहाटी मुसलमानोंसे अल्पसंख्यक हिन्दुओंके प्रति अपने बुनियादी कर्त्तव्यको स्वीकार करने का आग्रह करना चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच एकता स्थापित करनेके प्रयासकी सफलता बहुत हदतक इस कठिन समस्याके समुचित और सम्मानजनक समाधानपर ही निर्भर है।

हम सहयोगी और असहयोगी सभी लोग एक-दूसरेसे अपना बचाव करनेके मामलोंमें जितनी जल्दी सरकारपर भरोसा करना छोड़े देंगे, हमारे हकमें उतना ही अच्छा होगा तथा इस समस्याका समाधान उतनी ही जल्दी निकल आयेगा और