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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वह समाधान उतना ही अधिक स्थायी भी होगा। इस दृष्टिसे देखें तो कोहाटके अधिकारियोंकी उपेक्षाको हम इष्ट भी मान सकते हैं। यदि हिन्दुओंने अधिकारियोंसे सुरक्षाकी माँग न की होती और बिना कोई बचाव किये अपने-अपने घरोंमें वे जमे रहते या अगर उन्होंने यही किया होता कि हथियार उठाकर अपनी तथा अपनी सम्पत्ति और आश्रितोंकी रक्षा करते हुए वे मर मिटते तो इतिहास कुछ और ही ढंगसे लिखा जाता। मुझे खुशी होगी, अगर सरकार कोई ऐसी घोषणा कर दे कि साम्प्रदायिक झगड़ोंमें कोई भी उससे सुरक्षाकी अपेक्षा न करें। अगर दोनों पक्ष अपनी-अपनी स्वाधीनतापर दूसरेकी ओरसे होनेवाले हमलेके खिलाफ अपनी रक्षा आप ही करना सीख लें तो समझ लीजिए हम स्वराज्यके मार्गपर आरूढ़ हैं। यह चीज आत्म-रक्षा और आत्म-सम्मान की या दूसरे शब्दोंमें कहें तो स्वराज्यकी बहुत अच्छी तालीम होगी। बचावके दो तरीके हैं। सबसे अच्छा और कारगर तरीका तो यह है कि हम कोई बचाव करें ही नहीं, बल्कि तमाम खतरोंका सामना करते हुए अपने स्थानपर डटे रहें। इससे जरा कम अच्छा, लेकिन इतना ही सम्मानपूर्ण तरीका यह है कि अपने बचावके लिए बहादुरीके साथ प्रतिपक्षीपर वार करें और अपनेको ज्यादासे-ज्यादा खतरनाक स्थितियोंमें डालें। दोनोंके बीच दो चार-बार जमकर मुठभेड़ हुई नहीं कि वे समझ जायेंगे कि इस तरह एक-दूसरेका सिर फोड़ने से कोई फायदा होनेवाला नहीं है। उन्हें इस बातका ज्ञान हो जायेगा कि इस तरह लड़ना ईश्वरकी नहीं, बल्कि शैतानकी सेवा करना है।

अन्तमें, मैं रावलपिंडीमें शरणार्थियोंको दिया गया अपना वचन फिरसे दोहराता हूँ। जबतक उन्हें कोहाटके मुसलमानोंकी ओरसे हार्दिक निमन्त्रण न मिले तबतक यदि वे लौटकर वहाँ नहीं जायेंगे तो जो काम मैंने पहलेसे ही हाथमें ले रखे हैं, उनके पूरा होते ही मैं मौलाना शौकत अलीके साथ रावलपिंडी आकर दोनों सम्प्रदायोंके लोगोंके बीच सौहार्द स्थापित करनेकी कोशिश करूँगा और यदि इसमें असफल रही तो उन्हें जीवन यापनके उचित धन्धे ढूँढनेमें सहायता दूँगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-१२-१९२४