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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसका मतलब अपनेको ईश्वरके आसनपर बैठानेकी धृष्टता करना ही होगा और चूँकि क्या सही है, यह तय करनेके लिए हमारे पास कोई सर्वथा पूर्ण और सर्वमान्य मापदण्ड नहीं है, इसलिए आतंक नीतिको हर हालतमें गलत ही कहना होगा। दूसरे शब्दोंमें शुद्ध हेतुके कारण कोई अशुद्ध या हिंसात्मक कार्य उचित नहीं कहा जा सकता। इसलिए मैं अपराधियोंको खुशी-खुशी अपने-आपको अधिकारियोंके हवाले कर देनेपर भी बधाई नहीं दे सकता। इससे दोषका निवारण नहीं हो सकता। हो सकता है कि वह महज शेखीमें की गई बहादुरी हो। अभी हालमें खिड़कीमें एक व्यक्तिने एक महिलाकी हत्या करके आत्मसमर्पण कर दिया। किन्तु यह आत्मसमर्पण उसे फाँसी के तख्तेसे नहीं बचा पाया। उन निर्दोष स्त्रियोंको, जो ईमानदारीसे अपनी रोजी कमाती थीं, मारना-पीटना एक अक्षम्य अपराध था। अपने-आपको मुलशीपेटाके निवासियोंका हितैषी समझनेवाले इन व्यक्तियोंको पूरा अधिकार था कि वे यदि चाहते थे तो मजदूरोंके पास जाते और उन्हें समझा-बुझाकर टाटाका काम करनेसे रोक देते। परन्तु उन्हें कानूनको अपने हाथमें लेनेका कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने आतंकका गलत तरीका अपनाकर एक अच्छे उद्देश्यको हानि पहुँचाई है और जनताकी जो-कुछ सहानुभूति उनके साथ थी, उससे वे हाथ धो बैठे हैं। सुधारकोंकी ओरसे आतंकनीतिका उपयोग भी वैसा ही अनुचित हो सकता है जैसा कि सरकारकी ओरसे, बल्कि कहीं-कहीं तो उससे भी बढ़कर; क्योंकि इसके साथ तो एक हदतक झूठी सहानुभूति पैदा हो जाती है। मैंने एक महिलाको विप्लववादियोंके आत्म-बलिदानपर बड़ा ओजस्वी भाषण देते सुना और देखा कि श्रोताओंके हृदयपर उसका काफी प्रभाव भी पड़ रहा था। लेकिन थोड़ा विचार करनेपर यह स्पष्ट हो जायेगा कि स्वार्थ-त्यागके कारण किसी अपराधको जायज नहीं माना जा सकता। किसी बुरे या अनैतिक उद्देश्यका समर्थन आत्म-बलिदानके जरिये भी नहीं किया जा सकता। यदि कोई पिता अपने बच्चेको इस कारण आगसे खेलनेकी अनुमति दे देता है कि वह यह अनुमति पानेके लिए भूख-हड़ताल कर रहा है तो वह एक कमजोर पिता माना जायेगा। अभी पिछले दिनों ही कुछ नवयुवकोंने कलकत्तेके पास एक निर्दोष टैक्सी ड्राइवरको करीब-करीब मार ही डाला था; किन्तु सिर्फ इस कारणसे कि वे देश हितके लिए धन पानेके उद्देश्यसे ड्राइवरको लूट रहे थे और इस प्रयत्नमें वे अपनी जान भी खतरेमें डाल रहे थे, वे सहानुभूतिके पात्र नहीं हो सकते। जो लोग भुलावेमें आकर ऐसे दिग्भ्रमित युवकोंके साथ सहानुभूति प्रकट करते हैं वे दरअसल देशका अहित करते हैं। और इन युवकोंका भी कोई कल्याण नहीं करते।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १८-१२-१९२४