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३६९. पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

१८ दिसम्बर, १९२४

परमप्रिय चार्ली,

हाँ, तुम्हारे सब तार मिल गये थे। मैं तुमसे सहमत हूँ कि तुमको आरामकी जरूरत है--मुझसे भी बहुत ज्यादा जरूरत है। तो मैं तुम्हें 'यंग इंडिया' की हर चिन्तासे बिलकुल मुक्त कर देता हूँ। तभी लिखो जब लिखनेकी सहज प्रेरणाका अनुभव हो। मुझे तुमको मिस्र और बर्माके बारेमें परेशान करना उचित नहीं था। मेरे अभिभाषणने एक अजीब मोड़ ले लिया है। कई विषयोंको मैंने, उनका अत्यन्त संक्षेपमें उल्लेख करके, समाप्त कर दिया। तुम उसे फुर्सतके समय सावधानीसे पढ़ना और अगर तुम्हारा मन हो तो उसकी आलोचना भी करना। तुम्हें शान्तिनिकेतनमें रहनेवाले यूरोपीयोंको गर्मियोंमें पर्वतीय जलवायुमें ले जाना चाहिए और उन्हें खाना हमेशा यूरोपीय ढंगसे बनवाकर देना चाहिए।

सप्रेम,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० २६१८)की फोटो-नकलसे

३७०. पत्र: वि० ल० फड़केको

बृहस्पतिवार [१८ दिसम्बर, १९२४][१]

भाई मामा,

आपका पत्र मिला। बुधवारको ३१ तारीख है। मेरा विचार है कि मैं उस दिन रवाना होकर शुक्रवारको सवेरे एक्सप्रेससे दाहोद पहुँचूँ और शनिवारको गोधरा और गोधरासे उसी दिन अथवा रविवारको जो भी पहली गाड़ी मिले उससे साबरमती पहुँच जाऊँ। इस तरह ५, ६ और ७ तारीखोंको मैं आश्रम रह सकूँगा। उसके बाद फिर अपनी यात्रा शुरू कर दूँगा। इसलिए आप सोमवारका लालच छोड़ दें। इस कार्यक्रममें यदि कुछ परिवर्तन करना पड़ा तो आपको सूचित करूँगा।

बापू

गुजराती पत्र (जी० एन० ३८१०) से।

  1. अनुमानत: गांधीजीने यह पत्र बृहस्पतिवार १८ दिसम्बर, १९२४ को साबरमतीसे बेलगाँवके लिए रवाना होनेसे पहले लिखा था। वे ३१ तारीखको बम्बईमें थे और २ तारीखको दाहोद और गोधरा गये थे। श्री फड़के गोधरामें अन्त्यजोंके लिये एक आश्रम चलाते थे।