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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बड़े या छोटे, नगरोंके या गाँवोंके---सभी लोग अकेले या सम्मिलित रूपसे अमल कर सकते हैं। इसलिए चरखा ही मेरे इस वर्षके कार्यक्रमका केन्द्र-बिन्दु है। एक वर्षके अन्दर विदेशी वस्त्रोंका पूर्ण बहिष्कार करनेके लिए चरखेका भारी प्रचार करना जरूरी है और कांग्रेसके लिए कताई सदस्यता स्वीकार करना नितान्त आवश्यक। यह भी जरूरी है कि कताई सदस्यता स्वीकार करनेवाले सभी लोग पूरी निष्ठासे वर्ष-भर चरखेके कार्यक्रमपर अमल करें और यदि कताई सदस्यताको स्वीकार करनेवाले और इसके पक्षमें मत डालनेवाले लोग इसपर वर्ष-भर अमल नहीं करेंगे तो मेरा दिल टूट जायेगा। अन्तमें मैं यही कहूँगा कि यदि चरखके कार्यक्रमके पक्षमें मत देनेवाले सभी लोग पूरे तौरपर इस कार्यमें जुट जायेंगे तो मुझे पूरी आशा और पूरा विश्वास है कि राष्ट्रको इसे स्वीकार करनेमें ज्यादा दिन नहीं लगेंगे।

गांधीजीने यहाँ प्रसंगवश सरकारके विरुद्ध संघर्षकी अपनी उस योजनाका भी उल्लेख किया, जिसकी चर्चा उन्होंने पंजाबमें अपने एक भाषणमें पहले की थी। उन्होंने कहा कि उस योजनाको सांगोपांग ठीक-ठीक रूप दिया जा सके, इसकी एक पूर्व-शर्त है---विदेशी वस्त्रोंका पूर्ण रूपसे या व्यापक पैमानेपर बहिष्कार। अपरिवर्तनवादियोंसे मेरा आग्रह है कि वे अगले वर्षके दौरान अपनी सारी शक्ति चरखेके प्रचारपर ही केन्द्रित करें। कताई सदस्यताके लिए मैं हर चीज दाँवपर लगा रहा हूँ और अगर मैं देखूँगा कि मेरे अनुयायी मेरा उचित रूपसे समर्थन नहीं कर रहे हैं तो मेरा दिल टूट जायेगा। मेरी नई योजना बारडोलीकी योजनासे भिन्न होगी, हालाँकि उसमें मेरा विश्वास अब भी उतना ही जीवन्त है। मैं अभी उस योजनाका पूरा ब्यौरा नहीं बता रहा हूँ; लेकिन यदि वर्षके अन्ततक आवश्यक बहिष्कार पूरा हो गया तो मेरा कार्यक्रम अमलमें लाया जा सकता है, फिर देशमें चाहे कुछ भी हो रहा हो। लेकिन योजनापर अमल करनेकी सबसे बड़ी शर्त यही है कि पहले विदेशी वस्त्रोंका बहिष्कार पूरा हो। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि आप आवश्यक प्रयत्न करें तो विदेशी वस्त्रोंका पूर्ण बहिष्कार हो सकता है और यदि वह पूरा कर दिया गया तो सविनय अवज्ञाके लिए उपयुक्त समय आ जायेगा।

गांधीजीने अन्तमें कहा कि यहाँ उपस्थित लोगोंमें से उनकी सूची तैयार कर लो जाये जो वर्षके अन्ततक अपेक्षित २४,००० गज सूत निश्चित रूपमें देना स्वीकार करें और जो आवश्यकता पड़नेपर देशकी खातिर जान देनेके लिए तैयार हों।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २२-१२-१९२४