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३७४. भाषण: मानपत्रोंके उत्तर में[१]

२१ दिसम्बर, १९२४

गांधीजीने दोनों मानपत्रोंका उत्तर एक साथ देते हुए कहा; आप लोगोंने मेरी तारीफमें जो कुछ कहा है, मैं उसके योग्य नहीं हूँ, क्योंकि मैंने आपके शहर या जिलेके लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया है। उन्होंने ऐसे ही अवसरोंपर हालमें बम्बई, कलकत्ता व अहमदाबादमें जो बातें कही थीं, उन्हें दुहराते हुए कहा कि मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप उन्हें पढ़ें और समझें। भारतकी मौजूदा राजनीतिक हालतमें देशकी नगरपालिकाओंको भी राष्ट्रीय आन्दोलनमें शरीक होना चाहिए। किन्तु उन्हें स्वास्थ्य और सफाई आदिकी व्यवस्थाके अपने प्रारम्भिक कर्त्तव्योंको भुलाकर ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं पश्चिमी सभ्यताका प्रशंसक नहीं हूँ, परन्तु हमें सफाई-विज्ञान सम्बन्धी बातोंमें अभी पश्चिमसे बहुत कुछ सीखना है। भारत कृषि-प्रधान देश है और प्लेग व दूसरी महामारियोंका हमारे शहरोंमें, जो पश्चिमके शहरोंके मुकाबलेमें बहुत छोटे हैं, फैलना नामुमकिन होना चाहिए। मुझे लोगोंके मुँहसे यह सुनकर बहुत दुःख होता है कि ये महामारियाँ ईश्वरकी दी हुई हैं। मैं स्वयं ईश्वरको मानता हूँ, परन्तु मैं समझता हूँ कि मनुष्यके प्रयत्नोंसे मानवीय दुःखोंके कम किये जानेकी बहुत कुछ गुंजाइश है। जब हम खुद ही ईश्वरके या कुदरतके कानूनोंको तोड़ते हैं तो ऐसी हालतमें इन महामारियोंकी जिम्मेदारी ईश्वरपर डालना अनर्गल बात है। मुझे यह देखकर खुशी होती है कि यहाँ ब्राह्मणों तथा अब्राह्मणों व हिन्दुओं और मुसलमानोंके पारस्परिक सम्बन्ध मित्रतापूर्ण हैं। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप लोग इन सम्बन्धोंको कायम रखें और अछूतोंके साथ भी प्रेमका व्यवहार करें।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया, २२-१२-१९२४
२५-३१
 
  1. बेलगाँव नगरपालिका और जिला बोर्डने गांधीजीको ये मानपत्र दरगामें भेंट किये थे।