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३७५. अहुरमज्द और अहरमन

[ २२ दिसम्बर, १९२४ ][१]

कांग्रेसके आगामी अधिवेशनसे पहले मेरे मनमें कई विचार आ रहे हैं। इस समय मौन दिवसकी भोर है। कांग्रेसका अधिवेशन आजसे चार दिन बाद आरम्भ होगा। अहुरमज्द और अहरमन---खुदा और शैतानके बीच जो सतत संग्राम चलता रहता है, वही मेरे हृदयमें उग्र रूपसे चल रहा है। मेरा हृदय भी, अन्य करोड़ों-अरबों इन्सानोंके हृदयोंकी भाँति इस शाश्वत संग्रामका एक क्षेत्र है। मैंने इन पिछले दो बेशकीमती दिनोंमें अपरिवर्तनवादियोंसे महत्त्वपूर्ण बातचीत की है। सरोजिनी देवी कहती हैं, 'अपरिवर्तनवादी' शब्द बुरा है। मैं उनके इस कथनसे सहमत हूँ और मैंने जनताको इससे अधिक प्यारा शब्द देनेका दायित्व कवयित्रीके कन्धोंपर ही डाल दिया है। मेरे हृदयकी एक आवाज कहती है: "यदि तुम और किसी भी बातकी परवाह न करो, बल्कि केवल जिसे तुम अपना कर्त्तव्य समझते हो उसीका पालन करो तो सब-कुछ ठीक ही होगा।" दूसरी आवाज कहती है: "तुम तो मूर्ख हो। तुम्हें स्वराज्य-वादियों का विश्वास न तो करना चाहिए और न ही अपरिवर्तन-वादियोंका। स्वराज्यवादी जो-कुछ कहते हैं उसको अमलमें लाना नहीं चाहते और अपरिवर्तनवादी नाजुक वक्तपर तुम्हें संकटमें छोड़कर अलग हो जायेंगे। इन दोनोंके बीच तुम्हारा चरखा पिसकर चूर-चूर हो जायेगा। इसलिए तुम मेरी बात सुनो और सबसे अलग हो जाओ तो अच्छा रहेगा।" मैं पहली आवाजके अनुसार कार्य करूँगा। यदि स्वराज्यवादी मुझे धोखा दे जायें और अपरिवर्तनवादी मेरा साथ छोड़ ही दें तो भी क्या हुआ? इससे उन्हीं की हानि होगी, मेरी नहीं। किन्तु यदि मैं भी दुनियादारीकी बात सुनूँ, तब तो मैं सब-कुछ खो चुका, ऐसा ही मानना चाहिए। मैं भविष्यकी कल्पना करना नहीं चाहता। मुझे तो वर्तमानकी ही परवाह करनेसे मतलब है। अगले क्षण क्या होगा, यह ईश्वरने मेरे बसमें नहीं रखा है। इसलिए जैसे मैं यह चाहता हूँ कि स्वराज्यवादी मेरा विश्वास करें, वैसे ही मुझे भी स्वराज्यवादियोंका विश्वास करना चाहिए। मैं अपरिवर्तनवादियोंपर कमजोरीका दोष लगानेकी हिम्मत नहीं कर सकता, क्योंकि मैं नहीं चाहूँगा कि वे मुझे कमजोर समझें। इसलिए मुझे स्वराज्यवादियोंकी बातकी सचाईपर और अपरिवर्तनवादियोंकी शक्तिपर भरोसा रखना चाहिए। यह सच है कि मैंने अकसर धोखा खाया है। बहुत-से लोगोंने मुझे धोखा दिया है और बहुत-से लोगोंने कमजोरी दिखाई है। किन्तु उनसे मेरा साथ रहा है, इसका मुझे पछतावा नहीं है; क्योंकि जैसे मुझे सहयोग करना आता है, वैसे ही असहयोग करना भी आता है। दुनियामें काम करनेका सबसे अधिक व्यावहारिक और सम्मानपूर्ण तरीका यही है कि

  1. मौन दिवस, अर्थात् सोमवार, २२ दिसम्बरके उल्लेखसे।