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३७६. भाषण: बेलगाँव कांग्रेसको विषय समिति में[१]

२३ दिसम्बर, १९२४

इसके बाद श्री गांधीने बैठकमें अपना भाषण दिया। उन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, यद्यपि कुछ प्रश्नोंपर सभामें मत-विभाजन कराना बिलकुल ही जरूरी हो सकता है, लेकिन जिस प्रश्नपर स्वराज्यवादियों और गैर-स्वराज्यवादियोंके बीच सैद्धान्तिक और बुनियादी मतभेद हो, उसके सम्बन्धमें मैं मत विभाजनकी स्थिति नहीं पैदा होने देना चाहता। उन्होंने कलकत्तेमें अपने और स्वराज्यवादी नेता सर्वश्री दास व [ मोतीलाल ] नेहरूके बीच हुए समझौतेका उल्लेख करते हुए कहा कि पिछली अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने उसे मंजूर कर लिया था और आप लोग भी इसी समय इसकी ताईद करनेकी कृपा करें। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी पिछली बैठकके बादसे अभीतक क्या होता रहा है, इसे मैं गौरसे देखता आ रहा हूँ। इस समझौतेके सम्बन्ध में देशवासियोंके जो विचार हैं, उनसे मुझे श्री विट्ठलभाई पटेल अवगत कराते रहे हैं। समझौतेका सबसे महत्त्वपूर्ण भाग वह है, जिसका सम्बन्ध नई सदस्यताकी शर्तसे है। कल रातको और आज भी श्री पटेलने मुझसे कहा कि मैं कताई-सदस्यताकी माँग करके एक घातक कदम उठा रहा हूँ और कांग्रेसके नब्बे फीसदी सदस्य सदस्यताके प्रस्तावित परिवर्तनके खिलाफ हैं। श्री पटेलने मुझसे यह भी कहा कि जहाँतक उनको मालूम है, स्वराज्यवादियोंमें शायद ही कोई ऐसा हो जो सदस्यताकी शर्तमें परिवर्तन चाहता हो और अपरिवर्तनवादियोंमें भी बहुत-से लोग इसके खिलाफ हैं। मैं इसे माननेके लिए तैयार नहीं हूँ, हालाँकि मैंने वह प्रस्ताव देखा है जो बिहार प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी, सिन्ध कांग्रेस कमेटी, मध्य प्रान्तीय कमेटी तथा महाराष्ट्र कांग्रेस कमेटीने तथा बिहारके एक सम्मेलनने भी पास किया है। यदि आप लोग समझौतेको अस्वीकार करना जरूरी समझें तो आप मेरा कोई भी लिहाज न करते हुए खुशीसे ऐसा करें।

मैं आप लोगोंको सचेत किये देता हूँ कि आप सिर्फ मुझे खुश करने के लिए ही इस परिवर्तनको स्वीकार न करें। आपको अपने अन्तःकरण के अनुकूल मत देना चाहिए, क्योंकि अन्तःकरणकी आवाज किसी भी एक मनुष्यके मत से अधिक मूल्यवान् है, फिर चाहे उस मनुष्यने देशकी कितनी ही सेवा क्यों न की हो और वह आपकी नजरोंमें भी चाहे कितना ही ऊँचा क्यों न हो।

श्री दासने मुझे लिखा है कि समझौते की इस बातके सम्बन्धमें अब मैं स्वराज्यवादियोंकी ओरसे निश्चिन्त रहूँ और इस विषयमें श्री विट्ठलभाई पटेलका विचार उनका निजी विचार ही है। श्री दासने यह भी लिखा है कि स्वराज्यवादी दल

  1. गांधीजी इसके अध्यक्ष थे।