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भाषण: बेलगाँव कांग्रेसकी विषय-समितिमें

गरीब से गरीब मनुष्यकी--हर पुरुष, स्त्री और बच्चेकी--सहायतासे ही हो सकता है। मेरा विनम्र मत है कि राष्ट्रकी ओरसे ऐसा प्रयास एक ईमानदाराना और सर्वथा उचित प्रयास होगा। यदि हम उस बहिष्कारको पूरा कर सकें--और आजकी परिस्थितिमें हम केवल यही कर सकते हैं --तो इस तरह, और केवल इसी तरह, हम अपने-आपको और सारे संसारको दिखा सकते हैं कि हम इसके साथ ही हजारों और बड़े-बड़े काम भी कर सकते हैं, लेकिन तभी, जब हम पहले इस बहिष्कारको सम्पन्न कर दिखायें।

आपको याद होगा कि आज एक ऐसा संशोधन सामने आया था जिससे मुझे चोट पहुँची है। वह श्री भोपटकरने यह कहते हुए पेश किया था कि जब वयस्क ही कताईको नहीं अपनाते और सभी अवसरोंपर खदर पहननेको तैयार नहीं होते तो हमारे लिए बच्चोंसे वैसा करनेकी आशा करना अनुचित है। इससे सचमुच, मुझे चोट पहुँची है। इसका सीधा-सा कारण यह है कि उन्होंने सदस्यता की शर्तका एक ऐसा अर्थ निकाला है, जो निकल ही नहीं सकता। मेरा कहना यह है कि सदस्यताके लिए हमने यह जो शर्त लगाई है वह तो न्यूनतम शर्त है। और उसे न्यूनतम ही होना चाहिए, क्योंकि इस शर्तका पालन न करना इस अर्थमें दण्डनीय भी है कि उसका पालन न करनेपर आप लोगोंको सदस्यताके अधिकारसे वंचित कर देंगे। मत देनेका अधिकार एक पवित्र चीज़ है। इसलिए एक न्यूनतम शर्त रखनी ही थी। वह न्यूनतम शर्त यह है कि हमें सभी राजनीतिक और सांस्कृतिक समारोहोंके अवसरोंपर खद्दर पहनना होगा। किन्तु निश्चय ही इसका अर्थ यह नहीं कि आप बेलगाँवमें कांग्रेसके समाप्त होते ही खद्दरको उतार फेंकें। यदि इसका अर्थ ऐसा हो तो आप विदेशी कपड़ेका कारगर ढंगसे बहिष्कार नहीं कर सकते। मैं चाहता हूँ कि आप समझौतेको पढ़ें और उसके भावको समझें। यह न्यूनतम अपेक्षा तो कांग्रेसके सदस्योंसे रखी गई है। फिर हम राष्ट्रसे कितनी ज्यादा अपेक्षा रख सकते हैं? न केवल हम वयस्कोंको बल्कि बच्चोंको भी सभी अवसरोंपर खद्दर पहनना चाहिए। मेरे कहनेका अर्थ यह है कि खद्दर हमारा प्रतिदिनका पहनावा होना चाहिए। जबतक ऐसा नहीं होता, तबतक बहिष्कार नहीं किया जा सकता।

मुझसे कहा गया है कि अनिच्छुक लोगोंको स्वयं कातनेकी शर्तसे मुक्त रखनेका उपबन्ध कताईसे बचनेका एक रास्ता है। किन्तु समझौतेका यह अर्थ नहीं लगता। यदि उसका वही अर्थ है जो आपने बताया है तो इस प्रस्तावको कल ही मैं फाड़कर फेंक देना चाहूँगा, यद्यपि तब यह देखकर मुझे बहुत दुःख होगा कि विदेशी कपड़े का बहिष्कार एक असम्भव कार्य है। अनिच्छासे सम्बन्धित धारा केवल उन लोगोंके लिए है जो शारीरिक दृष्टिसे असमर्थ हैं या जिनकी सूत कातनेकी सचमुच ही इच्छा नहीं है। बच्चे निश्चित रूपसे उस धाराके अन्तर्गत नहीं आते। आप समझौतेका पालन करनेके लिए अवश्य ही तैयार रहें, जिससे विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार सम्भव हो जाये। यदि हम केवल ईमानदारीसे इसपर अमल करें तो एक वर्षके अन्दर ही हमें भारी सफलता देखनेको मिलेगी। यदि प्रतिनिधिगण गाँवोंमें घूम-घूमकर चरखेका