पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सन्देश जनतातक पहुँचानेका काम शुरू कर दें तो यह काम इतना बड़ा है कि हममें से तमाम उत्कृष्ट कार्यकर्त्ताओंकी शक्तिका उपयोग इसमें हो सकता है। यदि आपको प्रस्तावपर विश्वास नहीं है तो उसे पास करना व्यर्थ है। इसलिए आप लोग कल जब अधिवेशनमें इकट्ठे हों तब मैं चाहता हूँ कि आप सोच-विचारकर और परिणामको भली-भाँति ध्यानमें रखकर ही अपना मत दें। यदि आप हृदयसे इस कार्यक्रमपर नहीं चलना चाहते तो यह सफल नहीं होगा। जब प्रतिनिधि अपने-अपने प्रान्तोंमें वापस जायें, तब उन्हें अपने-अपने प्रान्तके ग्रामीणोंसे सम्पर्क स्थापित करना चाहिए और उनको बताना चाहिए कि उनका क्या कर्त्तव्य है। तो प्रतिनिधि कल सोच-समझकर, विचारपूर्वक और परिणामोंकी ओर देखकर अपना मत दें।

मैं आपको यहाँ से जानेसे पहले सावधान करना और इस बातकी याद दिलाना चाहता हूँ कि आपको एक पवित्र दायित्व सौंपा गया है। मेरा इरादा २७ तारीखको कार्य समाप्त कर देनेका है। भाषण आदिके अलावा जो काम हैं---जैसे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके कामकी विधि और तफसीलें तय करना, कार्य समितिको नियुक्ति करना आदि-- उन्हें निबटानेके लिए तो पूरा एक दिन चाहिए ही।

यहाँ श्री न० चि० केलकरने महात्मा गांधीको सम्बोधित करते हुए कहा:

मैंने आपकी अपील सुन ली है। अबतक यह अपील केवल स्वराज्यवादियोंसे की गई है। किन्तु मैं चाहता हूँ कि आप समझौतेके दूसरे भाग अर्थात् कौंसिलोंमें कौंसिलवालोंके कार्यको कांग्रेसकी ओरसे मान्यता देने तथा उन्हें हर सम्भव तरीकेसे सहायता देनेके सम्बन्धमें अपरिवर्तनवादियोंसे भी अपील करें। मैं आपको उनसे अपील करते सुनना चाहता हूँ।

मैं श्री केलकरसे पूरी तरह सहमत हूँ। वास्तवमें, मैं 'यंग इंडिया' के पृष्ठों में अपने विचार पहले ही व्यक्त कर चुका हूँ। सबको कलके पवित्र कार्यके लिए तैयार होने से पहले मैं प्रत्येक अपरिवर्तनवादीको उसके कर्त्तव्यकी याद दिला देना चाहता हूँ। मेरी अपील केवल स्वराज्यवादियोंसे ही नहीं थी। मुझे हमेशा से यहीं बताया गया है कि अपरिवर्तनवादियोंमें ऐसे भी लोग हैं जो कताई-सदस्यतामें विश्वास नहीं करते। इसलिए अपरिवर्तनवादियोंसे मेरी अपील है कि वे समझौतेको उसी भावना से ग्रहण करें जिस भावनासे मैंने उसे सम्पन्न किया है और यही भावना उनके मनमें भी होना उचित है। मैं स्वराज्यवादियोंको अपनी पूरी शक्तिसे मदद देना चाहता हूँ और जिस हृदतक एक मनुष्यके लिए सम्भव है, उस हदतक उनके उद्देश्यकी सिद्धिमें सहायक बनना चाहता हूँ, मैं उनके उद्देश्यको हानि तो किसी तरह नहीं पहुँचाऊँगा। मैं जान-बूझकर "उनका उद्देश्य" शब्दोंका प्रयोग कर रहा हूँ; क्योंकि कुछ ऐसा कारण है जिससे उनके तरीकोंके सम्बन्धमें मैं उनसे एकमत नहीं हूँ। यह सच है कि उनका उद्देश्य केवल उन्हींका या कांग्रेसका ही नहीं, बल्कि सारे राष्ट्रका है। इसका निर्णय करनेका अधिकार मुझे नहीं है। अगर वे कहते हैं कि यह चरखा क्या चीज है तो उन्हें ऐसा कहनेका अधिकार है। इसी प्रकार कौंसिलोंके बारेमें, जिसे वे नौकरशाही के खिलाफ हमारी लड़ाईका एक महत्त्वपूर्ण साधन मानते