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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है। अगर आप उसमें अविश्वास करते हों तो फिर आपको समझौता अस्वीकार कर देना चाहिए। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो आप अपने दायित्वके प्रति झूठे साबित होंगे।

श्री केलकर: लेकिन अगर मनमें अश्रद्धा हो तब तो काम इसी निषेधक मानसिक स्थिति अनुपातमें होगा। आपको उन स्वराज्यवादियोंके लिए कुछ गुंजाइश तो रखनी ही पड़ेगी, जिन्होंने मनमें कुछ अश्रद्धा छिपा रखी हो--और यह तो सच ही है कि कुछके मनमें ऐसी अश्रद्धा है।

यदि वह अश्रद्धा इस विश्वासकी हदतक पहुँचती हो कि चरखेसे कोई लाभ नहीं होगा तो आप इस समझौते को अस्वीकार कर दें।

मैं चरखेके सम्बन्धमें स्वराज्यवादियोंसे जिस सहयोगकी आशा रखता हूँ वह वैसा और उतना नहीं है जितनेकी आशा वे कौंसिलोंके कार्यके सम्बन्धमें मुझसे रख सकते हैं और यह बात समझौतेमें स्पष्ट रूपसे बता दी गई है। मैं आपसे असम्भवकी उम्मीद नहीं रखता। मैं तो आपसे इतनी ही आशा रखता हूँ कि आप अपनी क्षमता और विश्वास के अनुसार जितनी सहायता कर सकते हैं, करें; किन्तु उसे बिलकुल ईमानदारी के साथ करें। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं चाहता। मैं चाहता हूँ कि सभी सदस्य समझौतेको इसी भावनासे देखें। यदि वे उसे इस भावनासे नहीं देखते तो मैं यह भविष्यवाणी करता हूँ कि हमारा आन्दोलन असफल रहेगा। किन्तु मैं तो तब भी असफल नहीं रहूँगा। हाँ, यह सही है कि तब मैं विलक्षण और अहमन्य समझा जाऊँगा। कुछ यूरोपीय कहते भी हैं कि मैं अहमन्य हूँ; और कुछ भारतीय भी कहते हैं कि मेरा दावा है कि मैं अकेला ही मानव-प्रकृतिको समझता हूँ और कोई दूसरा नहीं समझता। मेरा विश्वास है कि मैं सही हूँ। दूसरे लोगोंकी बात भी उतनी ही सही हो सकती है, किन्तु यदि मुझे अपनी बात और अपने तरीकेके सही होनेपर पूर्ण विश्वास नहीं हो तो मैं इस नेतृत्वके उपयुक्त नहीं रहूँगा। मैं उस बुरी मनोवृत्तिको, मनमें कुछ और रखनेकी और मुँहसे कुछ और कहने शकी उस प्रवृत्तिको दूर करना चाहता हूँ, जिसकी ओर श्री केलकरने संकेत किया है। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए कि मनमें कुछ और रखें और मुँहसे कुछ और कहें। कोई भी ऐसा न सोचे कि स्वराज्यवादी भारतके दुश्मन हैं। न मैं यह विश्वास करता हूँ कि बेचारे अराजकतावादी भारतके दुश्मन हैं। वे अपनी समझके अनुसार काम करते हैं। मैं किसीके बारेमें कोई फतवा कैसे दे सकता हूँ? मैं केवल उनके कामके बारेमें अपनी राय ही दे सकता हूँ। लेकिन यहाँ दोनों की स्थितियोंमें कोई समता नहीं है।

मैं अपरिवर्तनवादियोंसे कहता हूँ कि यदि आप चरखेपर विश्वास नहीं करते तो अन्तमें जाकर आप देखेंगे कि हिंसात्मक तरीकोंके अलावा आपके पास और कोई तरीका नहीं रह जाता। यदि आपको लगता है कि चरखा आपकी देशभक्त आत्माको सन्तुष्ट नहीं कर पाता तो आप कौंसिलोंमें अवश्य जायें। वहाँ आप हलचल करके कुछ कैदियोंको तो मुक्त करा सकेंगे। यदि आज स्वराज्यवादी अपने सबसे प्रिय सिद्धान्तोंकी बलि देने को तैयार हों और कहें कि वे अण्डमानके कैदियोंकी रिहाई