पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९१
भाषण: बेलगाँव कांग्रेसकी विषय-समितिमें

चाहते हैं तो उनको रिहा करा सकते हैं। किन्तु उन्होंने अपने कन्धोंपर जो दायित्व लिया है वे उसके प्रति सच्चे हैं, और आशा है कि वे देशके लिए इस प्रकारकी हानिकर सौदेबाजी नहीं करेंगे। वे अण्डमानके कैदियोंकी रिहाईके लिए या यरवदा जेलमें पड़े किसी बेचारे बीमार कैदीको मुक्त करानेके लिए कौंसिलोंमें नहीं गये हैं। मैंने कई बार कहा है और मैं इसे फिर दुहराता हूँ कि यदि आप चरखेमें विश्वास नहीं करते तो आपके पास केवल एक ही विकल्प रह जाता है---वह यह कि आप कौंसिलोंमें जायें। कुछ करनेके खयाल से बहुत-से लोगोंके कौंसिलोंमें जानेका रहस्य यही है। आखिर जो कौंसिलोंमें गये हैं वे देशकी सर्वोत्कृष्ट प्रतिभाका प्रतिनिधित्व करते हैं। वे अनुभवी सैनिक हैं। उदाहरणके लिए, आप अपनी सारी जिन्दगी कुर्बान कर देनेवाले पण्डित मदन मोहन मालवीय---जैसे व्यक्ति कहाँसे पायेंगे? मैंने उन्हें जब १९०१ में सर दिनशा वाछाकी अध्यक्षतामें हुए कांग्रेस अधिवेशनमें भाषण करते देखा था, तभीसे मैं उन्हें जानता हूँ। उन्होंने बहुत काफी काम किया है और वे अभी भी कौंसिलके सदस्य बने हुए हैं। उनका अब भी कौंसिलोंमें विश्वास है। वे मूढ़ तो नहीं हैं। मैं जब भी उनसे मिलता हूँ, मेरा माथा उनके सामने झुक जाता है। ये चित्तरंजन दास कौन हैं? और पण्डित मोतीलाल नेहरू कौन हैं? वे आज इस प्रकारके लिवास क्यों पहनते हैं? पण्डित मोतीलाल नेहरू किसी समय राजा- महाराजाओं की तरह रहते थे। वे एक बार मोटरसे लाहौर आये थे और उनके साथ नौकरोंकी एक पूरी पलटन थी। बहुत ही कम राजा उतने ठाठ-बाटसे रहते थे। उनके सुन्दर बागीचेमें, जहाँ कभी गुलाब तथा अन्य पुष्प भरे रहते थे, आज घास-पात खड़ा है। क्या वे देशद्रोही हैं? मेरा माथा इन लोगोंके सामने बराबर झुक जाता है। मैं जब भी इन लोगोंको देखता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि मुझमें कोई कमी है, जिसके कारण मैं उनसे सहमत नहीं हो पाता और उनके दृष्टिकोणको समझ नहीं पाता। फिर श्री केलकर कौन हैं? वे उनकी[१]परम्पराके प्रतिनिधि हैं जो भारतकी महानतम विभूतियोंमें से एक थे। जिनका नाम पीढ़ियोंतक अमर रहेगा और हमारे देशमें, जो एक परमेश्वरकी पूजा तो करता ही है किन्तु साथ ही अनेक देवताओंको भी पूजता है, जो एक देवताकी भाँति पूजे जायेंगे। इसलिए मेरी आपसे अपील है कि आप अपने हृदयों को शुद्ध करें, उदार बनें और अपने हृदयोंको सागरकी तरह विशाल बनायें। 'कुरान शरीफ' और 'गीता' का यही उपदेश है। दूसरे लोग आपके बारेमें फतवे न दें, इसलिए आप दूसरोंके बारेमें फतवे मत दीजिए। भगवानका खयाल कीजिए। वह तो सबसे बड़ा न्यायाधीश है और चाहे तो हमारे दोषोंके लिए हमें मृत्यु दण्ड भी दे सकता है, लेकिन वह कितना दयावान है कि हमें जीने दे रहा है। आप अन्दर और बाहरसे अनेक शत्रुओंसे घिरे हुए हैं, किन्तु वह आपकी रक्षा करता है और आपपर अपनी कृपापूर्ण दृष्टि बनाये रखता है।

क्या आप ऐसा नहीं कर सकते? हम ऐसा क्यों कहें कि उनकी राजनीति भ्रष्ट है और वे वंचक लोग हैं या वे बेईमान हैं या यह कि उनमें राजनीतिक

  1. लोकमान्य तिलककी।