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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खादी टिकाऊपनमें कमी होनेका खास कारण बाजारसे खरीदा हुआ सूत है, क्योंकि:

१. यह सूत हमेशा अच्छी रुईसे नहीं काता जाता;

२. ज्यादातर सूत कम बटदार होता है।

३. यह लापरवाहीसे छाँटा जाता है।

४. झिरझिरा बुना होता है।

यदि खादी तैयार करनेवाले उक्त दोषोंसे बचनेका ध्यान रखें तो खादीके टिकाऊपनके बारेमें शिकायतोंकी गुंजाइश कम रहेगी।

मैं इस टिप्पणीको खादीके उत्पादनमें दिलचस्पी रखनेवाले सब लोगोंके मार्ग-दर्शनके लिए प्रकाशित कर रहा हूँ।

दो मानपत्र

बेलगाँव जिला-बोर्ड और बेलगाँव नगरपालिकाने मानपत्र देकर मेरा सम्मान किया है। इन मानपत्रोंमें मेरे गुणोंका बखान किया गया है। मुझे लगता है कि अखिल भारतीय कार्यकर्त्ताके रूपमें मेरे गुणोंके बखानकी कोई जरूरत नहीं थी। नगरपालिकाकी ओरसे तो उसी व्यक्तिको मानपत्र देना उचित होता जिसका नगरपालिका-सम्बन्धी कार्योंमें योगदान हो। किन्तु हम जिस विशेष परिस्थितिमें आज रह रहे हैं उसमें नगरपालिकाएँ स्वतन्त्र होनेके लिए संघर्ष कर रही हैं और अपनी स्वतन्त्रताकी भावना- को इस प्रकार सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओंके साथ अपना कुछ-कुछ तादात्म्य दिखाकर व्यक्त करती हैं, भले ही उन कार्यकर्त्ताओंमें नगरपालिकाके कामके उपयुक्त गुण हों या न हों। सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओंको नगरपालिकाकी ओरसे मानपत्र देना केवल इसी दृष्टिसे उचित ठहराया जा सकता है। किन्तु इन मानपत्रोंके देनेसे मुझे पाश्चात्य देशोंके इस सम्बन्धमें किये गये प्रयत्नोंकी प्रशंसा करनेका अवसर मिला, यद्यपि मैं सामान्यतः पाश्चात्य संस्कृतिका विरोध करता हूँ।[१]हम पाश्चात्य देशोंसे एक बात सीख सकते हैं और हमें सीखनी चाहिए। वह है उनका नगरोंकी सफाईका विज्ञान। हम अपनी सहज वृत्तिसे और अपनी आदतसे ग्राम्य-जीवनके अभ्यस्त हैं, जिसमें सामुदायिक स्वच्छता की आवश्यकता अधिक अनुभव नहीं की जाती। किन्तु चूँकि पाश्चात्य सभ्यता भौतिकता-प्रधान है और इस कारण उसका रुझान गाँवोंकी उपेक्षा करके शहरोंके विकासकी ओर ही अधिक है, इसलिए पाश्चात्य देशों के लोगोंने सामुदायिक स्वच्छता और स्वास्थ्य-रक्षाका विज्ञान विकसित कर लिया है। हमें इस विज्ञानसे बहुत-कुछ सीखना है। हमारी गलियाँ संकरी और टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं, हमारे घर घिच- पिच और कम हवादार होते हैं, हम पीनेका पानी जहाँसे लेते हैं उसकी सफाई की घोर उपेक्षा करते हैं। हमें इन दोषोंको दूर करने की जरूरत है। प्रत्येक नगरपालिका लोगोंसे स्वच्छताके नियमोंका पालन कराने का आग्रह करके बड़ीसे-बड़ी सेवा कर

  1. देखिए "भाषण: मानपत्रोंके उत्तरमें ", २१-१२-१९२४।