पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९९
उद्घाटन भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

आपने इस प्रस्तावको स्वीकार किया---मैं स्वीकार करना प्रतिज्ञा करना समझता हूँ, ईश्वरका नाम लेकर प्रतिज्ञा की और प्रतिज्ञा करके उसपर न चले तो मैं आपको आपपर छोड़ता हूँ। अगर देशको गांधीका काम पागलपन मालूम हो तो उसका त्याग कर दीजिए। आप फिर सोच लें कि क्या हिन्दुस्तान स्वराज्यके काबिल है? जो प्रतिज्ञा छोड़ देता है, उसके लिए जगत् क्या कहता है? तुलसीदास उसे क्या कहते हैं? भले ही 'बाइबिल' हो, भले ही 'गुरु ग्रंथसाहब' हो, भले ही 'कुरान' हो, उसको पढ़िए। आप पायेंगे कि ऐसा आदमी कोढ़ी है, निकम्मा है, झूठा पैसा है, खोटा रुपया है। अगर झूठा पैसा लेकर दुकानमें गये तो गवर्नमेंट सजा देगी। तो मैं आपको यही सुनाता हूँ और आपको बहकाना नहीं चाहता। मैं खेल खेलना नहीं चाहता हूँ। जो सोचता हूँ, समझता हूँ, वही सुनाता हूँ। मुझे विश्वास है कि जबतक करोड़ों भाई-बहन चरखा नहीं चलाते, सूत नहीं कातते, खद्दर नहीं तैयार करते, नहीं पहनते, स्वराज्य हर्गिज हासिल नहीं हो सकता। जबतक यह नहीं होता, तबतक हिन्दुस्तानमें कंगालीयत नहीं मिटेगी जबतक देशके करोड़ों कंगालोंको रोटी नहीं मिलेगी, तबतक स्वराज्य नहीं मिल सकता।

अगर आप स्वराज्य चाहते हैं तो यही शर्त है। मैंने, देशबन्धु दास और पण्डित मोतीलाल नेहरूके साथ एक करार किया है और मैंने वह सारे भारतवर्षके सामने रखा है। और मैं समझता हूँ कि जो-कुछ हम चाहते हैं इसमें कोई गलती नहीं है। जो-कुछ वे चाहते हैं, उसका हक उनको है। मैं यह मानता हूँ कि कौंसिलोंकी मार्फत कुछ भी नहीं मिल सकता। लेकिन कुछ बड़े-बड़े नेता हैं, जो मानते हैं कि कुछ-न-कुछ मिल सकता है; कुछ नहीं करते तो कौंसिलोंमें तो जायें। यह सच है। मैं कहता हूँ कि जब वे उसमें फायदा समझते हैं तो वे जरूर जायें। वे भी मुल्कके नेता हैं। मैं कौन हूँ कि जो नहीं कहूँ। तो करारमें यह है कि अगर जाना चाहते हैं तो जायें। इसके मानी यह नहीं कि जो असहयोगी हैं वे भी उसको मानें। कांग्रेस नाफेरवादी (अपरिवर्तनवादी) और फेरवादी (परिवर्तनवादी) दोनोंकी है। किसी एककी है, यह बात झूठी है। इसलिए वे [ कौंसिलों में ] कांग्रेसकी तरफसे जायेंगे।

मैंने कहा है कि यह बात झूठी है। पर यह आग्रह कि मेरी ही बात सच है और दूसरोंकी बात झूठी---तो यह भी एक खतरनाक बात है। इस आग्रहको भी मिटा देना है। जबतक जगत् में मस्तिष्क अलग-अलग हैं, तबतक मत भी अलग-अलग रहेंगे। लेकिन हम हरएकको हृदयसे लगाना चाहते हैं; सहनशीलता पैदा करना चाहते हैं--यह भी अहिंसाका ही एक टुकड़ा है।

लेकिन मैंने कहा है कि यह छोटी बात है। प्रतिज्ञामें सबसे बड़ी बात चरखा है। चरखा-शास्त्र अगर आप नहीं मानते हैं, खद्दरको नहीं मानते, अगर आप यह मानते हैं कि 'फ्रेंचाइज' से नई कांग्रेसकी शक्ति कम हो जायेगी तो इसका त्याग कर दें।

भाइयों, मैंने इतना हिन्दीमें, टूटी-फूटी हिन्दीमें समझा दिया। यह कहते हुए मुझे अफसोस होता है कि कितने भाई दक्षिण, कर्नाटकसे आते हैं जो कहते हैं 'अंग्रेजीमें बोलें,--यह बड़े दरदकी बात है। मैं जबसे हिन्दुस्तानमें आया तबसे कहता रहा हूँ कि कमसे-कम कांग्रेसमें स्वराज्यके विषयमें, हिन्दीमें बात करें। लेकिन