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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमारे दुर्दैवसे हमारी शिक्षामें ऐसा दोष आ गया है और आलसीपन आ गया है कि जितना प्रयत्न इसके लिए करना चाहिए, हम लोगोंने नहीं किया है। अगर मुझे विश्वास हो जाये कि मैं जो-कुछ कहना चाहता हूँ वह जो भाई तमिलनाडसे आये हैं या कर्नाटकके हैं, मेरी टूटी-फूटी हिन्दी समझ लेते हैं तो भी चल जाता; मगर मैं तो जानता हूँ। लोग नहीं समझते। मैं एक बात भूल गया। मैं देशबन्धु दासको भूल गया। इस गुनाहमें बंगाल भी मदद कर रहा है। मैं तो चाहता हूँ कि ईश्वर मुझे ऐसी शक्ति देता कि जिस भाषामें रवीन्द्रनाथ ठाकुर उत्तम काव्य देते हैं, उसको मैं सीख लेता और बंगालीमें बंगाली भाइयोंको सुनाता। लेकिन मेरे भाग्यमें वह बात नहीं थी।

तो प्रार्थना एक ही है। वह भी हमारे भाई समझ लें--हिन्दीमें जो कहना था, समाप्त किया। यह प्रस्ताव आपने समझ लिया है, इसलिए वे[१]आयेंगे और जो-कुछ कहना है कह देंगे, प्रस्ताव नहीं पढ़ेंगे। आप उनको मजबूर न करें। प्रतिनिधियोंको सुभीता हो, वे प्रस्ताव पढ़ लें, इसलिए मैंने जवाहरलाल और गंगाधररावजीसे कहा था कि प्रस्ताव उनके पास पहुँच जाये। वह आपके पास पहुँच गया होगा। (नहीं, नहीं---की अवाजें)। कितने ऐसे हैं? (बहुत-से---की आवाज) अच्छा। मैंने सुना दिया है कि उस प्रस्तावमें क्या लिखा है। (हँसी) आप सब वह प्रस्ताव पढ़ लेंगे, अखबारोंमें निकल जायेगा। थोड़ी-सी बात है; उसमें स्वराज्यवादी और अपरिवर्तनवादी दोनों, 'चेंजर' और 'नोचेंजर' सब एक होकर रहना चाहते हैं। हमारे मतमें फरक है, लेकिन हमारे हृदयमें फरक नहीं है। अगर आप नाफेरवादी (अपरिवर्तनवादी) हैं तो भी आपके हृदयमें उतना ही स्थान देशबन्धु दास, पण्डित मोतीलाल और केलकरके लिए और दूसरोंके लिए होना चाहिए जितना मेरे लिए है। अगर आप स्वराज्यवादी हैं तो मेरे लिए उतना ही स्थान होना चाहिए जितना उनमें से किसीके लिए है। यही हिन्दू-मुस्लिम यूनिटी है---हिन्दू-मुस्लिम एकता का यही अर्थ है कि मैं सनातनी हूँ तो जितना स्थान मेरे हृदयमें पूज्य मालवीयजीके लिए है, उतना ही मौलाना मुहम्मद अलीके लिए, शौकत अलीके लिए और किसी भी मुसलमानके लिए होना चाहिए, भले ही वह हमको दुश्मन मानता हो। यह बड़ी बात मैंने कह दी। आप कहेंगे, कहाँ, मालवीयजी और कहाँ दुश्मन समझनेवाला मुसलमान। लेकिन अगर 'गीताजी', 'भागवतजी', 'रामायणजी' पढ़कर मैंने कुछ सीखा है तो यही।

तो अब आप प्रस्ताव पढ़कर उनकी बात सुनें और उनको मजबूर न करें कि वह प्रस्ताव पढ़ें।

इसके पश्चात् महात्माजीने अंग्रेजीमें भाषण देते हुए कहा:[२]

मित्रो,

मैं आपका दस मिनटसे अधिक समय नहीं लेना चाहता। मैंने अपने लिए केवल आधे घंटे का समय रखा था; किन्तु मैंने हिन्दुस्तानीमें बोलनेमें, जितना मैं चाहता

  1. चित्तरंजन दास।
  2. इससे भागेका अंश अंग्रेजी रिपोर्टसे अनूदित है।