पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०१
उद्घाटन भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

था, उससे अधिक समय लगाया है। आपको मेरे भाषणकी, हमारे मतलबकी बहुत-सी आवश्यक भाषाओंमें अनूदित प्रतियाँ मिल गई हैं, इसलिए मैं उस भाषणका कोई भी अंश नहीं पढ़ना चाहता। इससे आपका धैर्य जाता रहेगा तथा आपका और मेरा समय भी बरबाद होगा, इसीलिए मैं उस भाषणको नहीं पढ़ रहा। हम उस कार्यको, जो हमारे सामने पड़ा है, यथासम्भव जल्दीसे-जल्दी समाप्त करना चाहते हैं। देशबन्धु दास अभी आपके सामने मुख्य प्रस्ताव रखेंगे। यदि आप उस प्रस्तावको अस्वीकार कर देते हैं तो आप अपने रास्ते चलें और जो आप अपने तथा देशके लिए सर्वोत्कृष्ट समझें वही करें; और मुझे भी अनुमति दें कि मैं भी जो काम अपने लिए सबसे अच्छा समझता हूँ उसमें अर्थात् कताईमें लग जाऊँ। मैं आपसे, आपमें से प्रत्येक व्यक्तिसे आग्रहपूर्वक कहता हूँ कि आपके सामने जो कुछ रखा जा रहा है, आप उसपर ध्यानपूर्वक विचार करें।

आपके सामने एक क्रान्तिकारी परिवर्तनका प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा रहा है। यह एक ऐसा परिवर्तन है जो मेरे विचारसे, जैसा कि लालाजीने कहा है, उतना ही क्रान्तिकारी है जितना कि १९२० में उन्हींके सभापतित्वमें सम्पन्न कलकत्ताके विशेष अधिवेशनमें राष्ट्र द्वारा किया गया परिवर्तन था। मैं तो लालाजीकी तरह यह भी स्वीकार करता हूँ कि जिस परिवर्तनको मैंने प्रस्तुत किया है और राष्ट्रके सामने रखा है वह सम्भवतः और भी अधिक क्रान्तिकारी है। इसलिए यदि आप उक्त प्रस्तावका समर्थन पूरे हृदयसे करें और उसपर अमल करें तो मैं कह सकता हूँ कि उससे स्वराज्य शायद काफी निकट आ जायेगा; क्योंकि वे दिन चले गये जब हम केवल प्रस्ताव पास करके सन्तुष्ट हो जाते थे और फिर उन्हें भूल जाते थे। इस प्रस्तावमें अस्पष्ट तरीकेसे राष्ट्रसे अपील नहीं की गई है; बल्कि काम करनेकी इच्छा रखनेवाले प्रत्येक व्यक्तिसे आग्रह किया गया है। यह प्रस्ताव विशेष रूपसे दोपहर बाद यहाँपर उपस्थित प्रत्येक समझदार स्त्री-पुरुषको ध्यानमें रखकर तैयार किया गया है और यद्यपि देशबन्धु दास और मौलाना मुहम्मद अली आपसे ईश्वरको साक्षी रखकर इस प्रस्तावको पास करनेके लिए नहीं कहेंगे, फिर भी मैं आपसे वैसा करने के लिए कहता हूँ; और जब आप इस प्रस्तावपर मतदान करने लगें, तब कृपया याद रखें कि आप उसे ईश्वरको साक्षी मानकर पास कर रहे हैं। इसका मतलब होगा कि आप राष्ट्रके लिए, देशके दरिद्रतम लोगोंके लिए, स्वराज्यकी प्राप्तिके निमित्त कुछ करनेका जिम्मा ले रहे हैं। यदि आपका इस प्रस्तावपर पूर्ण विश्वास नहीं है तो अब मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि आप इसको अस्वीकार कर दें।

इस प्रस्तावके पीछे मेरा व्यक्तित्व है, इसका आपपर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। मैंने बार-बार आप लोगोंसे कहा है कि मैं कोई ऐसा मनुष्य नहीं हूँ, जिससे गलती नहीं हो सकती। मैंने इस बातको बार-बार स्वीकार किया है कि मुझसे भूल हो सकती है। मैंने कई बार स्वीकार किया है कि मैंने जीवनमें कभी-कभी बेहद भारी भूलें भी की हैं। मैंने उसके लिए प्रायश्चित्त किया है। जो मनुष्य कभी गलती नहीं करता वह पूर्ण मनुष्य होता है। उसे प्रायश्चित्त करनेकी आवश्यकता नहीं होती।