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उद्घाटन भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

और खाना चाहते हैं, उनके गो-मांस खानेपर आपत्ति नहीं करता था। हो सकता है कि जबतक यह लड़की वयस्क हो, तबतक मैं मर जाऊँ; किन्तु जब वह बड़ी होगी, मेरे सन्देशको लोगोंतक पहुँचायेगी। आज वह शुद्ध और भोली-भाली है। वह सोचती है कि कहीं भी कोई खराबी नहीं है। वह घृणाको जानतीतक नहीं। वह प्रेमकी प्रतिमा है। मैं उसमें प्रेमका साकार रूप देखता हूँ। इसीलिए हमें पृथक् करनेवाली इस खाईके रहते हुए भी मैं उसके साथ अपने निकटतम सम्बन्धीके समान व्यवहार कर रहा हूँ। मैं उसके माध्यमसे मुसलमानोंके साथ अपना ऐक्य स्थापित करनेकी कोशिश कर रहा हूँ। उसका खयाल है कि 'कुरान' के अनुसार उसके लिए गो-हत्या करना वैध है, जब कि मेरा धर्म मुझे आदेश देता है कि मैं गो-हत्या न करूँ। इन परिस्थितियोंमें मैं कौन हूँ जो उसे कहूँ कि वह गो-हत्या न करे? यदि मैं ऐसा करूँ तो मेरा वह कार्य मेरे धर्मके विरुद्ध होगा। किन्तु मैं उसे प्रेमका पाठ पढ़ाकर जीतना चाहता हूँ। मैं उससे कहूँगा, बल्कि कहता हूँ कि 'कुरान' तुमको मजबूर नहीं करता कि तुम गो-हत्या करो या गो-मांस खाओ। मेरा धर्म न केवल इसकी अनुमति नहीं देता, बल्कि मेरा 'कुरान' मुझे मजबूर करता है कि मैं गायकी पूजा करूँ। तुम चाहे गायकी पूजा न करो, किन्तु यदि मैं गो-मांस नहीं खाता तो उसे तुम बुरा तो न मानो, यदि मैं गायकी पूजा करता हूँ तो तुम उसे भी सहन करो। मेरे प्रति मित्रतापूर्ण भावनाके कारण तुम गो-वध करनेसे हाथ रोक सकती हो। उस लड़की गुलनारसे मेरे प्रेम करनेका यही रहस्य है। इसीलिए मैं मौलाना शौकत अलीकी मुट्ठी मैं रहता हूँ। और मैं मालवीयजीका खयाल क्यों नहीं करता? इसका केवल एक कारण है कि उनके प्रति मेरी भक्ति स्वयंस्फूर्त है। किन्तु मुसलमानोंका मैं विशेष खयाल रखता हूँ। मैं अन्यथा कर भी कैसे सकता हूँ? जब आप मुसलमानोंका विशेष ख्याल रखेंगे तो आप ठीक निष्कर्ष पर पहुँच जायेंगे और इस समस्याका सही हल निकाल लेंगे। यदि कोई कहे: "हिन्दुओंको क्या करना चाहिए और मुसलमानोंको क्या करना चाहिए, आप इस समस्याका हल निकालें। तो मैं कहूँगा, यह प्रत्येक हिन्दूका कर्त्तव्य है कि वह मुसलमानोंका विशेष खयाल रखे और प्रत्येक मुसलमानका कर्त्तव्य है कि वह हिन्दुओंका विशेष खयाल रखे। मान लीजिए कि मैं देखता हूँ कि एक ऐसा ऋषि है जो ईश्वरको देखने या प्राप्त करनेके लिए एक उपाय अपनाता है और मैं दूसरा उपाय अपनाता हूँ और इसीलिए वह जो-कुछ करता है उसे मैं शंकाकी दृष्टिसे देखता हूँ। तब मैं अपने मनमें कहता हूँ कि मुझे उसके दृष्टिकोणके प्रति विशेष सहानुभूति रखनी चाहिए और जब मैं ऐसा करूँगा, तभी मेरा आचरण न्यायपूर्ण होगा। मैं मुसलमानोंसे कहना चाहूँगा कि वे भी ऐसा ही करें---वे हिन्दुओंका विशेष खयाल करके चलें।

उन्होंने (श्रीमती नायडूने) मुझेसे एक बात और कहनेके लिए कहा है। उस बातका सम्बन्ध उदारदलवालोंसे है। "क्या आप उदारदलवालोंके बारेमें कुछ कहने जा रहे हैं?" मैं केवल यही कह सकता हूँ कि मैं उदारदलवालोंकी पूजा करता हूँ। जिस प्रकार मैं यह चाहता हूँ कि स्वराज्यवादी कांग्रेसमें आये उसी प्रकार मैं यह भी चाहता हूँ कि उदारदलीय लोग कांग्रेसमें आयें। मैंने अपना हृदय उनके सामने