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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खोलकर रख दिया है। हम चरखेके पास बैठकर सूत कातना चाहते हैं। वे कहते हैं: "नहीं, हम चरखा लेकर नहीं बैठना चाहते, हम सूत नहीं कातेंगे।" तब मैं अपने आपसे पूछता हूँ: "अब मैं क्या करूँ?" यदि वे कहते हैं: "हम चरखेको छुयेंगे ही नहीं", तो मैं उन्हें केवल यह कहता हूँ, "आप कांग्रेसमें प्रवेश करें और मुझे उसमें से निकाल बाहर करें।"

अब मेरा भाषण समाप्त होता है। मैं आपसे यह कहना चाहता हूँ कि आप ईश्वरको साक्षी करके जो-कुछ करनेका निर्णय करें, उसे पूरा करें, चाहे इसके लिए आपको मृत्युका वरण ही क्यों न करना पड़े। (तालियाँ)

उनका छपा हुआ भाषण पढ़ा हुआ मान लिया गया। वह नीचे दिया जा रहा है?[१]

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३९ वें अधिवेशनकी रिपोर्ट।

३८२. अध्यक्षीय भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें[२]

२६ दिसम्बर, १९२४

दोस्तो,

आप लोगोंने जो सम्मान मुझे दिया है उसकी जिम्मेवारीको मैंने बहुत पसोपेशके बाद स्वीकार किया है। यह असाधारण मान इस बार आपको श्रीमती सरोजिनी नायडूको देना चाहिए था, जिन्होंने कि केनिया और दक्षिण आफ्रिकामें ऐसा अद्भुत काम किया है। लेकिन ईश्वरको ऐसा मंजूर न था। देशके भीतरी और बाहरी घटनाक्रमने मेरे लिए इस बोझको उठाना जरूरी कर दिया। मुझे मालूम है कि जिस ऊँचे पदपर आपने मुझे बिठाया है उसकी जिम्मेवारियोंको ठीक अदा करनेकी कोशिशमें आप मेरी पूरी-पूरी मदद करेंगे।

आरम्भमें, मैं इस मौकेपर भारतमें बी-अम्माँ, सर आशुतोष मुखर्जी, बाबू भूपेन्द्रनाथ बसु, डाक्टर सुब्रमण्यम अय्यर और श्री दलबहादुर गिरिकी तथा दक्षिण आफ्रिकामें पारसी रुस्तमजी और श्री पी० के० नायडूकी मृत्युपर अपने हार्दिक दुःखको और उनके प्रति अपने आदर-भावको जाहिर करता हूँ और इससे जो दुःख उनके रिश्तेदारोंपर गुजरा है उसके लिए आपकी तरफसे मैं उनके साथ हमदर्दी प्रकट करता हूँ।

सिंहावलोकन

सितम्बर १९२० से कांग्रेसका उद्देश्य खासकर देशकी भीतरी ताकतको बढ़ाना रहा है। फलतः दरख्वास्तों और अर्जियोंके जरिये अपने दुःख-दर्द दूर करनेका

  1. देखिए अगला शीर्षक।
  2. लगता है, यह भाषण १८ दिसम्बरसे पहले ही तैयार कर लिया गया था; देखिए "पत्र: सी० एफ० एन्ड्यूजको", १८-१२-१९२४।