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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जड़ पकड़ ली है और उसकी यह आंशिक सफलता भी हमें स्वराज्यके नजदीक ले आई है और यह बात सूर्य-प्रकाशकी तरह स्पष्ट हो गयी है कि किसी ध्येयके लिए कष्ट सहनेकी क्षमता हो तो उसका मिलना जरूर आसान हो जाता है।

कदम थामनेकी जरूरत

लेकिन आज हमारे सामने एक ऐसी हालत खड़ी हो गई है जो हमें मजबूर करती है कि हम कदम थामें। कारण, यद्यपि असहयोगमें अनेक व्यक्तियोंका विश्वास भी अटल है, किन्तु जिन लोगोंका इस आन्दोलनसे सीधा ताल्लुक है, उनमें से अधिकांशका आज विश्वास, एक विदेशी कपड़ेके बहिष्कारकी बातको छोड़कर उससे हट गया है। बीसियों वकीलोंने अपनी छोड़ी हुई वकालत फिरसे शुरू कर दी है। कुछको यह पछतावा भी है कि उन्होंने उसे कभी छोड़ा ही क्यों था। बहुत-से लोग जिन्होंने विधानसभाओंका बहिष्कार किया था, अब फिर उनमें चले गये हैं और विधानसभामें विश्वास रखनेवालोंकी तादाद बढ़तीपर है। सैकड़ों लड़के-लड़कियाँ, जिन्होंने सरकारी पाठशालाओंको छोड़ दिया था, अब पछताकर फिर उनमें लौट रहे हैं। मेरे सुननेमें आया है कि इन सरकारी स्कूलों और कालेजोंमें प्रवेशकी माँग इतनी जबरदस्त है कि वे इन सारे प्रवेशार्थियों को जगह नहीं दे पा रहे हैं। इस हालतमें इन चीजोंके बहिष्कारका पालन एक राष्ट्रीय कार्यक्रमके रूपमें तबतक नहीं किया जा सकता, जबतक कि कांग्रेस इन वर्गोंको छोड़कर अपना काम चलानेके लिए तैयार न हो। लेकिन मैं यह मानता हूँ कि आज उन लोगोंको कांग्रेसके बाहर रखना उतना ही अव्यवहार्य है जितना कि असहयोगियों-को। यह जरूरी है कि दोनों दल एक-दूसरेके काममें दखल दिये बिना और एक-दूसरे के खिलाफ टीका-टिप्पणी किये बिना कांग्रेसके अन्दर ही रहें। जो सिद्धान्त हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यके सवालपर घटित होता है वही इन भिन्न-भिन्न दलोंकी पारस्परिक एकतापर भी होता है। हमें चाहिए कि हम आपसमें सहिष्णुता बढ़ावें और इस बातका यकीन रखें कि समय किसी भी एक दूसरेकी रायका कायल कर देगा, बल्कि हमें इससे भी एक कदम आगे बढ़ना चाहिए। हमें नरमदलवालोंसे तथा उन दूसरे लोगोंसे भी जो कि कांग्रेससे अलहदा हो गये हैं, अनुरोध करना चाहिए कि वे फिर कांग्रेसमें शामिल हों। जो असहयोग मुल्तवी हो जाये तो उनके लिए कोई वजह बाकी नहीं रहती कि वे कांग्रेससे अलग रहें। मगर इस बातमें पहला कदम हम कांग्रेसवालोंको उठाना चाहिए। हमें प्रेमपूर्वक उन्हें कांग्रेसमें शामिल होनेके लिए दावत देनी चाहिए और कांग्रेसमें पुनः प्रवेशका उनका रास्ता आसान बना देना चाहिए।

मैं समझता हूँ कि अब आप समझ गये होंगे कि मैंने स्वराज्यवादियोंके साथ समझौता क्यों किया।

विदेशी कपड़ेके बहिष्कारका फर्ज

आप लोगोंने देखा होगा कि विदेशी कपड़ेका बहिष्कार बदस्तूर कायम रखा गया है। एक अंग्रेज दोस्तकी भावनाका खयाल करके समझौतेमें बहिष्कार शब्दकी