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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसके जरिये हम उन्हें सच्ची राजनीतिक शिक्षा दे सकते हैं और उन्हें अपने पाँवपर खड़े होनेका और अपनी आवश्यकताएँ खुद पूरी करनेका सबक सिखा सकते हैं। इस प्रकार खादी कार्यका संगठन सहकारी समितियोंसे अथवा अन्य किसी प्रकारके ग्राम्य-संगठनसे कितने ही दर्जे बेहतर है। इसके अन्दर भारीसे-भारी राजनीतिक परिणाम छिपे हुए हैं; क्योंकि ऐसा करके हम ब्रिटेनके रास्तेसे सबसे बड़ा अनैतिक प्रलोभन दूर करते हैं। लंकाशायरके कपड़ेके व्यापारको मैं इसलिए अनैतिक कहता हूँ कि उसकी बुनियाद हिन्दुस्तानके करोड़ों खेतिहरोंकी तबाहीपर कायम की गई थी और वह अब भी उसीके बलपर जिन्दा है। और चूँकि एक बदी इन्सानको दूसरी बदियोंके लिए प्रेरित करती है, ब्रिटेनके उन बे-शुमार अनीतिमय कामोंकी जड़में, जिनकी अनैतिकता साफ-साफ साबित की जा चुकी है, यहीं एक अनीतिमय व्यापार है। ऐसी हालतमें अगर यह एक बड़ा प्रलोभन हिन्दुस्तान खुद ब्रिटेनके रास्तेसे अपनी कोशिशसे हटा दे तो इसका नतीजा हिन्दुस्तानके लिए नेक साबित होगा, ब्रिटेनके लिए नेक साबित होगा और चूँकि ब्रिटेन दुनियाकी सबसे बड़ी ताकत है, इसीलिए सारी मनुष्य जातिके लिए भी नेक साबित होगा।

मैं इस बातको नहीं मानता कि पहले वस्तुओंकी माँग होती है और फिर उनकी पूर्ति। बल्कि इसके खिलाफ नीति और धर्मका खयाल न रखनेवाले व्यापारी बनावटी तरीकोंसे माँगको बढ़ाते हैं और यदि राष्ट्र भी व्यक्तियोंकी तरह नीतिके नियमोंसे बँधे हुए हैं तो उन्हें उन लोगोंके कल्याणका लिहाज रखना जरूरी है, जिनकी जरूरतें वे पूरी करना चाहते हैं। उदाहरणार्थ, जिन्हें शराबकी लत पड़ गयी है उनके लिए शराब मुहैया करना किसी भी राष्ट्र के लिए अनुचित और अनीति-युक्त है। और यदि किसी देशमें बाहरी अनाज और वस्त्रके आयातसे खेतीकी पैदावार और कपड़ेका उत्पादन बन्द होता हो तथा इसके फलस्वरूप वहाँ बेकारी और गरीबी फैलती हो तो जो बात नशीली चीजोंके बारेमें लागू होती है वहीं अन्न और वस्त्रके सम्बन्धमें लागू होगी। कारण, बेकारी और गरीबी भी इन्सानके शरीर और आत्माको वैसा ही नुकसान पहुँचाती है जैसा कि नशीली चीजें। उत्साहका अभाव उत्तेजनाका ही प्रतिरूप है और इसलिए आखिरकार वैसा ही घातक, बल्कि कई बार तो उससे भी अधिक घातक साबित होता है, क्योंकि बेकारी या गरीबी से उत्पन्न आलस्य और अनुत्साहको हमने अभी एक अनीति और पाप मानना नहीं सीखा है।

ब्रिटेनका फर्ज

ऐसी हालतमें मैं कहूँगा कि ग्रेट ब्रिटेनका यह फर्ज है कि वह अपने यहाँ से बाहर जानेवाली चीजोंकी तिजारतको हिन्दुस्तानके हितका समुचित विचार करके नियंत्रित करे। इसी तरह हिन्दुस्तानका भी यह फर्ज है कि वह अपने यहाँ बाहरसे आनेवाली चीजोंको अपने हितका विचार करके नियंत्रित करे। वह अर्थशास्त्र गलत है जो नैतिक सिद्धान्तोंकी उपेक्षा करता है। अर्थशास्त्रके क्षेत्रमें अहिंसा-धर्मके प्रवेशका इससे कम कोई अर्थ नहीं हो सकता कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारके नियमनमें नैतिक मूल्योंको पूरा महत्त्व दिया जाये। और मैं यह माननेको तैयार हूँ कि मेरी महत्त्वाकांक्षा