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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसमें विश्वास ही नहीं करते। ऐसी हालतमें यह कहना न्यायकी दृष्टिसे ठीक नहीं है कि चरखेकी हलचल, उसके अन्दर जोश दिलानेकी कमीसे असफल हो गई है। और यह कहना कि चरखा महज औरतोंका पेशा है---तथ्योंसे आँख मूँदना है। आखिर सूत कातनेकी मिलें क्या हैं? वे भी बहुत-से चरखोंका एक संग्रह ही तो हैं। उन्हें पुरुष नहीं तो और कौन चलाते हैं? समय आ गया है कि हम इस भ्रमको छोड़ दें कि कुछ पेशे हम पुरुषोंकी शानके खिलाफ हैं। सामान्य परिस्थितियोंमें, बेशक चरखा कातना औरतोंका ही काम होगा। मगर हमारी भावी सरकारको हमेशा कुछ आदमी इस कामपर नियुक्त करने होंगे कि वे चरखेमें उसकी घरेलू धन्धेकी हैसियतको दृष्टिमें रखते हुए सुधार करते रहें। मैं आपको यह भी बता दूँ कि जो सुधार चरखेकी बनावटमें आज आप पाते हैं वे मुमकिन न होते, अगर हम पुरुषोंमें से कई लोग इस काममें अपनेको न लगाते और दिन-रात इसीकी धुनमें न लगे रहते।

यन्त्र

मैं आपसे यह भी कहना चाहता हूँ कि यन्त्रोंके बारेमें मेरे जो विचार बताये जाते हैं उनको आप अपने दिमागसे निकाल डालें। पहली बात तो यह है कि अहिंसामें मेरा विश्वास जिस हदतक है वह सारा-का-सारा राष्ट्रके स्वीकारार्थ पेश नहीं करता उसी तरह मैं यन्त्रोंके विषयमें अपने तमाम विचार देशके सामने पेश करनेकी कोशिश नहीं कर रहा हूँ। चरखा खुद भी यन्त्रकालका एक उत्कृष्ट नमूना है। मेरा सिर उसके अज्ञात आविष्कर्त्ताके प्रति रोज आदरसे झुक जाता है। मुझे सन्ताप तो इस बातपर होता है कि हिन्दुस्तानके इस एकमात्र घरेलू उद्योगको जो भूखकी बलासे, १,९०० मील लम्बे और १,५०० मील चौड़े क्षेत्रमें फैले हुए लाखों घरोंकी रक्षा करता था, अकारण और क्रूरतापूर्वक बरबाद कर दिया गया।

कताई-सदस्यता

अब आप इस बातपर ताज्जुब नहीं करेंगे कि मैं क्यों चरखेके पीछे पागल हो गया हूँ और न इस बातपर हैरान होंगे कि मैंने इसे सदस्यता की शर्तमें क्यों शामिल किया है और क्यों स्वराज्य-दलकी तरफसे देशबन्धु दास और पण्डित मोतीलाल नेहरूने इसे मंजूर किया है। अगर आज मेरा बस चले तो मैं कांग्रेसके सदस्यके रूपमें कांग्रेसके रजिस्टरमें ऐसे एक भी व्यक्तिका नाम दर्ज न होने दूँ जो चरखा कातने पर रजामन्द न हो या जो हर मौकेपर खादीका लिबास न पहने। फिर भी स्वराज्य-दलने जितना-कुछ स्वीकार किया है उसके लिए मैं उसका कृतज्ञ हूँ। शर्तमें जो ढिलाई बरती गयी है वह हमारी कमजोरी या विश्वासकी कमीके खातिर दी गयी रिआयत है। लेकिन इस रिआयतको उन लोगोंके लिए, जिनका चरखे और खादीमें पूरा विश्वास है, अपनी कोशिशको और तेज करनेका प्रेरक कारण होना चाहिए।

कोई दूसरा सन्देश नहीं

मैंने चरखे के बारेमें इतनी सविस्तार चर्चा इसलिए की है कि मेरे पास देशके लिए और कोई बेहतर या दूसरा सन्देश नहीं है। अगर हम सचमुच 'शान्तिमय और