पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५११
अध्यक्षीय भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

उचित' उपायोंसे ही स्वराज्य हासिल करना चाहते हों तो मेरे पास चरखेके सिवा कोई अन्य प्रभावकारी उपाय नहीं है। जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, सिर्फ यही एक हथियार ऐसा है जिसे हिंसात्मक साधनोंकी जगह सारा देश स्वीकार कर सकता है। मैं सविनय अवज्ञापर अब भी उसी तरह अटल हूँ। लेकिन जबतक कि हम अपने अन्दर विदेशी कपड़ेके बहिष्कारकी ताकत पैदा न कर लें, तबतक स्वराज्यके लिए सविनय अवज्ञाका प्रयोग नामुमकिन है। अब आप आसानीसे देख सकेंगे कि अगर मेरे चरखा-सम्बन्धी विचार आपको स्वीकार न हों तो मैं कांग्रेसके मार्ग-दर्शनके लिए किस तरह निकम्मा हो जाऊँगा। सच तो यह है कि मैं चरखेके मूलमें निहित सिद्धान्तकी जो व्याख्या करता हूँ उसे यदि आप गलत मानते हों तो अन्य कुछ मित्रोंकी तरह आपका भी यह खयाल करना अनुचित न होगा कि मैं देशकी प्रगतिके मार्गमें बाधक हूँ। अगर आपके दिल और दिमाग इस सिद्धान्तको कबूल न करते हों तो मेरे नेतृत्वको नामंजूर न करके आप अपने कर्तव्य-पालनमें चूँकेंगे। कहीं ऐसा न हो कि फिर लोग यह कहें कि हम हिन्दुस्तानियोंमें 'ना' कहनेकी ताकत और हिम्मत नहीं है, जैसा कि लॉर्ड विलिंगडनने एक बार कहा था और ठीक कहा था। आप सच मानिए कि अगर मेरी तजवीज आपको कुबूल न हो तो आपका उसे नामंजूर कर देना स्वराज्य-प्राप्तिकी दिशामें एक कदम आगे बढ़ना ही होगा।

हिन्दू-मुस्लिम एकता

हिन्दू-मुस्लिम एकता चरखेसे कम महत्त्व नहीं रखती है। वह तो हमारे राष्ट्रीय जीवनका आधार है। इस मसलेपर आपका ज्यादा समय लेना मैं जरूरी नहीं समझता। क्योंकि स्वराज्य हासिल करनेके लिए उसकी जरूरतके प्रायः सब लोग कायल हैं। 'प्रायः' शब्दका प्रयोग मैंने जान-बूझकर किया है, क्योंकि मैं जानता हूँ कि कुछ हिन्दू और मुसलमान ऐसे भी हैं जो हिन्दुस्तानमें अगर अकेले हिन्दुओं या अकेले मुसलमानों-का राज्य कायम न हो सके तो ब्रिटेनके अधीन गुलामीकी मौजूदा हालतको तरजीह देंगे। खुशी की बात है वे इने-गिने ही हैं।

मौलाना शौकत अलीकी तरह मैं भी बहुत दृढ़तापूर्वक यह मानता हूँ कि यह मौजूदा तनाजा एक चन्दरोजा बीमारी है। खिलाफत आन्दोलनने जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों कन्धेसे-कन्धा भिड़ाकर लड़े और उसके बाद शुरू हुए असहयोग आन्दोलनने गफलतकी नींदमें सोई हुई जनताको जगा दिया। इससे विशिष्ट वर्गोमें और सामान्य जनतामें एक नई चेतना प्रगट हुई है। दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी खुदगरज लोग थे जिन्हें असहयोगके उत्कर्षके दिनोंमें निराश होना पड़ा था। अब असह- योगमें से नवीनताका आकर्षण निकल गया है तो उन्हें अवसर मिल गया है और वे दोनों कीमोंकी धार्मिक अन्धता और खुदगर्जीसे फायदा उठाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। इसका कुफल हम पिछले दो वर्षोंके इतिहासमें स्पष्ट देख सकते हैं। मजहबको उन्होंने उपहासकी वस्तु बना दिया है। छोटी-छोटी निकम्मी बातोंको बढ़ाकर मजहबी उसूलोंके दर्जेपर चढ़ा दिया है और मजहबी दीवाने यह दावा पेश करने लगे हैं कि उनका पालन करना हर सूरतमें लाजिमी है। लोगोंमें झगड़े करानेके लिए