पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आर्थिक और राजनीतिक कारणोंका उपयोग किया गया है। कोहाटमें तो ये हरकतें चरम सीमाको पहुँच गई। स्थानीय हाकिमोंकी हृदयहीन उपेक्षाने उस दुर्घटनाको और भी दुखदायी बना दिया। उसके कारणोंकी छानबीन करने या किसीको कुसूरवार ठहरानेमें मैं वक्त सर्फ नहीं करना चाहता। मैं ऐसा चाहूँ भी तो मेरे पास इसके लिए काफी मसाला नहीं है। बस इतना ही कहना काफी होगा कि कोहाटके हिन्दू अपनी जान बचानेके लिए वहाँसे भाग निकले। कोहाटमें मुसलमान बहुत भारी तादादमें बसते हैं और एक विदेशी सत्ताके अधीन जितना सम्भव है उस हदतक वहाँ उनका प्रभावकारी राजनीतिक नियन्त्रण भी है। इसलिए अब यह दिखाना उनका काम है कि हिन्दू भी उनकी बहुसंख्याके बीच उतने ही सुरक्षित हैं जितने कि अगर कोहाटमें तमाम हिन्दू ही बसे होते तो वे होते। कोहाटके मुसलमानोंको तबतक चैन न लेना चाहिए जबतक कि वे एक-एक शरणार्थी हिन्दूको कोहाटमें वापस नहीं ले जाते। मैं उम्मीद करता हूँ कि हिन्दू सरकारके बिछाये जालमें न फँसेंगे और दृढ़ताके साथ तबतक कोहाट लौटनेसे इनकार करते रहेंगे जबतक कि वहाँके मुसलमान उनके जानो-मालकी हिफाजतका पूरा-पूरा यकीन दिलाकर उन्हें न बुलावें।

हिन्दू लोग सिर्फ उसी हालतमें मुसलमानोंकी भारी आबादीमें रह सकते हैं जबकि मुसलमान मित्रता और बराबरीके आधारपर उन्हें ससम्मान बुलाने और अपने पास रखनेके लिए तैयार हों और यही बात मुसलमानोंके लिए भी लागू होती है। अगर उनकी संख्या कम हो और हिन्दुओंकी ज्यादा हो तो उन्हें भी सम्मानपूर्वक जीवन बितानेके लिए हिन्दुओंके दोस्ताना सलूकपर ही अपना दारोमदार रखना होगा। कोई सरकार चोर-डाकुओंसे तो अपनी प्रजाकी रक्षा कर सकती है। यदि एक जाति दूसरी सारी जातिका सम्पूर्ण बहिष्कार कर दे तो उससे उसकी रक्षा हमारी अपनी सरकार भी नहीं कर सकेगी। सरकारें कभी-कभी पैदा हो जानेवाली असामान्य परिस्थितियोंसे निपट सकती हैं, किन्तु जब लड़ाई-झगड़े जीवनकी सामान्य परिस्थिति बन जायें तब ऐसी हालतको गृह-युद्ध कहेंगे और ऐसी हालतमें दोनों दलवाले आपसमें लड़कर ही निपटारा कर सकते हैं। मौजूदा सरकार एक विदेशी सरकार है; उसका शासन वस्तुतः प्रच्छन्न रूपमें सैनिक शासन ही है और इसलिए वह अपने पास इतना साजो-सामान तैयार रखती है कि जिसके बलपर वह, हम उसके खिलाफ चाहे जितनी ताकत जुटायें, अपनी हिफाजत कर सकती है। और इसलिए उसकी इतनी ताकत भी जरूर है कि अगर वह चाहे तो हमारे साम्प्रदायिक झगड़ोंको भी रोक सकती है। मगर लोकप्रिय होनेका थोड़ा भी दावा रखनेवाली किसी स्वराज्य- सरकारको युद्ध-स्तरपर न तो संगठित किया जा सकता है और न कायम रखा जा सकता है। स्वराज्य-सरकारका अर्थ है ऐसी सरकार जिसकी स्थापना हिन्दुओं, मुसलमानों और अन्य लोगोंने स्वेच्छापूर्वक आपस में मिलकर की हो। अगर हिन्दू और मुसलमान स्वराज्य चाहते हों तो उन्हें अपने भेद-भाव आपसमें मिल-जुलकर तय करने होंगे।

दिल्लीमें जो एकता-सम्मेलन हुआ था उसने हमारे साम्प्रदायिक मतभेदोंको तय करनेका मार्ग प्रशस्त कर दिया है। और सर्वदलीय परिषद्की समितिसे यह उम्मीद