पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/५५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१५
अध्यक्षीय भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

३. न्याय-वितरणकी व्यवस्था सस्ती होनी चाहिए और इस उद्देश्यको ध्यानमें रखकर अपीलकी अन्तिम अदालत लन्दनमें नहीं, बल्कि दिल्लीमें होनी चाहिए। दीवानी मुकदमोंमें वादियों और प्रतिवादियोंको ज्यादातर अपने मुकदमे पंच-फैसलेके लिए सौंपने-पर मजबूर किया जाना चाहिए। इन पंचायतोंके फैसले भ्रष्टाचारके मामलों अथवा कानूनके स्पष्ट दुरुपयोगके मामलोंको छोड़कर अन्तिम होने चाहिए। बीचकी अदालतोंकी संख्या अधिक नहीं होनी चाहिए। प्रमाण-विधि (केस लॉ) खतम होनी चाहिए और सामान्य प्रक्रिया सरल बना दी जानी चाहिए। हमने अंग्रेजोंकी बोझीली और जीर्ण-शीर्ण प्रक्रियाकी आँख मूँदकर नकल की है। उपनिवेशोंके लोग इस प्रक्रियाको सरल बनाते जा रहे हैं, जिससे वादियों और प्रतिवादियों---दोनोंके लिए अपने मुकदमोंकी पैरवी करना आसान हो जाये।

४. शराबसे और नशीली चीजोंसे होनेवाली आमदनी बन्द कर दी जानी चाहिए।

५. असैनिक और सैनिक सेवाओंके वेतन देशकी सामान्य अवस्थाको देखते हुए नीचे स्तरपर निर्धारित किये जाने चाहिए।

६. प्रान्तोंका विभाजन नये सिरेसे भाषाके आधारपर किया जाना चाहिए और प्रत्येक प्रान्तको अपने आन्तरिक विकास और शासनके मामलोंमें यथासम्भव अधिकसे-अधिक स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए।

७. विदेशियोंको दिये गये सारे इजारोंकी जाँचके लिए एक आयोग नियुक्त किया जाये और उस आयोगकी जाँचके परिणामोंको ध्यानमें रखते हुए न्यायपूर्वक प्राप्त समस्त निहित हकोंके संरक्षणका पूरा आश्वासन दिया जाये।

८. देशी राज्योंके राजाओंको उनके दर्जेके सम्बन्धमें पूरा आश्वासन दिया जाना चाहिए। केन्द्रीय सरकार इसमें किसी प्रकारकी बाधा नहीं डालेगी। किन्तु इन राज्योंके उन प्रजाजनोंको, जिन्होंने दण्ड विधान के विरुद्ध कोई अपराध न किया हो, स्वराज्य-प्राप्त भारतमें आश्रय लेनेका अधिकार रहे।

९. सब मनमाने अधिकार खत्म किये जायें।

१०. ऊँचेसे-ऊँचे स्थान उन लोगोंके लिए जो अन्य प्रकारसे योग्य हों, खुले होने चाहिए। शासनिक और सैनिक नौकरियोंकी परीक्षा भारतमें हो।

११. विभिन्न सम्प्रदायोंको पूरी धार्मिक स्वतन्त्रता हो। लेकिन इस शर्त के साथ कि वे एक-दूसरेके प्रति सहिष्णुताका बरताव करें।

१२. प्रान्तीय सरकारों, विधानसभाओं और न्यायालयोंकी सरकारी भाषा एक निश्चित कालके भीतर उस प्रान्तकी देशी भाषा बना दी जाये; अपीलकी अन्तिम अदालत---प्रिवी कौंसिल---की भाषा हिन्दुस्तानी हो; उसकी लिपि देवनागरी अथवा फारसी हो। केन्द्रीय सरकार और केन्द्रीय विधानसभाकी भाषा भी हिन्दुस्तानी हो। राष्ट्रोंके बीच कूटनीतिकी भाषा अंग्रेजी रहे।

मैं जैसा स्वराज्य चाहूँगा, उसकी कुछ एक शर्तोंकी एक मोटी रूप-रेखा मैंने ऊपर बताई है। हो सकता है आप लोगोंको लगे कि यह तो अनर्गल कल्पना है। फिर भी मेरा विश्वास है कि आप लोग उसपर हँसेंगे नहीं। मैंने जिन बातोंका उल्लेख किया है उनको लेने अथवा कार्य-रूप देनेकी शक्ति आज हममें न हो।