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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किन्तु क्या उनको लेने या करनेकी इच्छा-शक्ति हममें है? हमारे मनमें कमसे-कम उसकी इच्छा तो पैदा होनी चाहिए। यह विषय काल्पनिक होनेके कारण अत्यन्त लुभावना है। इसे समाप्त करनेसे पहले स्वराज्यकी योजना बनानेवाली समितिको मैं यह आश्वासन दे दूँ कि मैं यह नहीं चाहता कि समिति मेरे सुझावोंपर अन्य किसी भी व्यक्तिके सुझावोंकी अपेक्षा अधिक ध्यान दे। मैंने अपने भाषणमें उनको केवल इस विचारसे सम्मिलित कर लिया है कि इस तरह उनका प्रचार अन्यथा कदाचित् जितना होता उसकी अपेक्षा अधिक हो सकेगा।

स्वतन्त्रता

इस रूप-रेखामें यह बात मान ली गई है कि ब्रिटेनसे हमारा सम्बन्ध पूर्ण सम्मानजनक और पूरी तरह समान शर्तोंपर कायम रहेगा। किन्तु मैं जानता हूँ कि कांग्रेस-जनोंमें एक ऐसा वर्ग है जो हर हालतमें ब्रिटेनसे पूर्णतः स्वतन्त्र होना चाहता है। यह वर्ग बराबरीकी साझेदारी भी नहीं रखना चाहता। मेरी रायमें ब्रिटिश सरकार जो-कुछ कहती है, वैसा ही यदि करना भी चाहती है और हमें समान बनानेमें सच्चे दिलसे सहायता देना चाहती है तो ब्रिटेनसे पूर्णतः सम्बन्ध तोड़ लेनेकी अपेक्षा यह अधिक बड़ी सफलता होगी। इसलिए मैं साम्राज्यके भीतर स्वराज्य लेनेका उद्योग करना चाहता हूँ, किन्तु यदि ब्रिटेनके दोषके कारण उससे सम्बन्ध तोड़ लेना आवश्यक हुआ तो मैं पूर्णतः सम्बन्ध तोड़नेमें भी नहीं झिझकूँगा। यदि ऐसा हो तो मैं ब्रिटेनसे अलग होनेकी जिम्मेदारी अंग्रेज लोगोंपर ही डालूँगा। इस समय संसारके ज्यादा समझदार लोग चाहते हैं कि ऐसे पूर्ण स्वतन्त्र राज्य न हों जो एक दूसरेसे लड़ते रहें, बल्कि मित्रताके आधारपर अन्योन्याश्रयी राज्योंका संघ बनाया जाये। यह स्थिति दूर हो सकती है। मैं अपने देशके लिए कोई बड़ा दावा नहीं करना चाहता। किन्तु यदि हम स्वतन्त्रताकी अपेक्षा सबके साथ उक्त आधारपर सहयोगकी तैयारी दिखायें तो यह कोई बहुत बड़ा अथवा असम्भव दावा नहीं है। यह बात कहनी है तो ब्रिटेन ही कहे कि वह भारतसे सच्ची मित्रताका सम्बन्ध नहीं रखना चाहता। मैं यह चाहता हूँ कि स्वतन्त्रतापर आग्रह किये बिना हम पूर्ण स्वतन्त्रताकी शक्ति हासिल करें। जबतक ब्रिटेन यह कहता है कि उसका उद्देश्य भारतको साम्राज्यके भीतर पूर्ण समानता देना है तबतक मैं जो भी योजना बनाऊँगा उसमें मैत्रीकी बात रहेगी, मैत्रीको छोड़कर स्वतन्त्रताकी नहीं। मैं प्रत्येक कांग्रेस-जनसे अनुरोध करना चाहता हूँ कि वह हर हालतमें स्वतन्त्रताका आग्रह न करे। इसका कारण यह नहीं कि स्वतन्त्रता लेना कुछ असम्भव है, बल्कि इसका कारण यह है कि जबतक यह बात बिलकुल स्पष्ट नहीं हो जाती कि ब्रिटेन जो-कुछ कहता है उसके बावजूद वह वास्तवमें हमें गुलाम रखना चाहता है तबतक ऐसा करना नितान्त अनावश्यक है।

स्वराज्यवादी दल

यहाँतक तो मैंने अपने और स्वराज्यवादियोंके बीच हुए समझौते की शर्तों तथा उससे उठनेवाले सवालोंपर अपने विचार प्रकट किये। स्वराज्यवादी दलको कांग्रेसमें