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अध्यक्षीय भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें

हैं, पर यदि हम उनके आगे झुक गये तो अपना ही नुकसान करेंगे। हमारे शासकोंका सबसे ताजा काम है बंगालमें शुरू किया दमन। सर्वदलीय परिषद् ने साफ शब्दोंमें उसकी निन्दा की है। हाँ, उसे यह कहनेमें जरूर हिचकिचाहट हुई कि यह प्रहार बंगालके स्वराज्यवादी दलपर ही किया गया है। लेकिन मुझे कोई हिचकिचाहट नहीं है। मैं कलकत्ता गया था और वहाँ अलग-अलग राय रखनेवाले तरह-तरहके लोगों से मिलनेका मुझे मौका मिला था। उससे मैं इसी नतीजेपर पहुँचा हूँ कि यह प्रहार स्वराज्यवादी दलपर ही किया गया है। और लॉर्ड लिटन तथा लॉर्ड रीडिंगने उसके बाद, जो भाषण दिये, उनसे मेरी यह राय और भी पक्की हुई है। अपने पक्षके समर्थनमें उन्होंने जो-कुछ कहा है, वह बिलकुल पटने लायक नहीं है। इस तरहकी सफाई भारतवर्षमें ही दी जा सकती है, जहाँ लोकमतकी कुछ भी पूछ नहीं है, या है तो बहुत थोड़ी। लॉर्ड लिटनकी रिहाईकी शर्तें तो हमारी बुद्धिके लिए अपमानजनक हैं। दोनों वाइसराय साहब जब कहते हैं कि परिस्थिति ही इस अध्यादेश और १८१८ के विनियमके अन्तर्गत कार्रवाई करनेकी आवश्यकताका प्रमाण है तो वे साध्यको ही सिद्ध बात मानकर यह कहते हैं। लेकिन राष्ट्रकी धारणा तो इस विषयमें यह है:

१. जैसी परिस्थिति वे बताते हैं, वैसी कोई परिस्थिति वास्तवमें है, यह साबित नहीं हो पाया है।

२. यदि यह मान भी लें कि वास्तवमें ऐसी परिस्थिति है, तो भी इलाज रोगसे भी बदतर है।

३. इस परिस्थितिका मुकाबला करनेके लिए साधारण कानूनोंमें भी काफी अधिकार दिये गये हैं; और अन्तमें,

४. यदि असाधारण अधिकारोंकी आवश्यकता थी भी तो उन्हें यह अधिकार विधानसभाओंसे लेने चाहिए थे, जो खुद उन्हींकी बनाई हुई हैं।

दोनों वाइसराय साहबोंके भाषणोंमें ये प्रश्न बिलकुल टाल ही दिये गये हैं। फिर जिस राष्ट्रको सरकारके निराधार वक्तव्योंका बहुत-कुछ अनुभव है, वह इन भाषणोंको परम सत्य कैसे मान सकता है? वे जानते हैं कि हम उनके कथनपर विश्वास न तो कर सकते हैं न करेंगे---सो इसलिए नहीं कि वे जानबूझकर झूठ बोलते हैं, बल्कि इसलिए कि जिन सूत्रोंसे उन्हें खबर मिलती हैं, वे अकसर दूषित और पक्षपातपूर्ण पाये गये हैं। इसलिए उनका यकीन दिलाना लोगोंका मजाक उड़ाना ही है। उनके ये भाषण एक तरह हमें ललकार कर कहते हैं कि आओ, तुमसे जो-कुछ हो सके, सो कर लो। पर हमें न तो झुँझला उठना चाहिए और न धीरज छोड़ बैठना चाहिए। दमन यदि हमको डरा न सके, दबा न सके, न हमें अपने लक्ष्यसे हटा सके तो फिर उससे स्वराज्य पानेमें मदद ही मिल सकती है। क्योंकि वह हमें कसौटीपर चढ़ाता है और खतरेका सामना करनेके लिए हमारे अन्दर हिम्मत और कुरबानीका माद्दा पैदा करता है। एक सच्चे आदमी और राष्ट्रके लिए दमन वही काम करता