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३८६. भाषण: अ० भा० छात्र सम्मेलन, बेलगाँवमें

२७ दिसम्बर, १९२४

पण्डालमें प्रवेश करनेपर महात्मा गांधीका उत्साहके साथ स्वागत किया गया। अध्यक्ष और श्रोताओंके आग्रहपर महात्माजी करीब १० मिनटतक बोले। उन्होंने छात्रोंसे कहा कि वे स्वदेशीका पालन करें और खद्दर ही पहनें। उन्होंने बताया कि किस तरह देशकी मुक्तिका प्रश्न चरखके प्रसारके साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने श्रोताओंसे कहा, मैं समय न होनेका बहाना स्वीकार करनेको तैयार नहीं हूँ। यदि आप लोगोंमें काम करनेकी इच्छा होगी तो आप उसे कर सकते हैं। अन्तमें उन्होंने कहा कि खद्दर किसीके प्रति घृणाका प्रतीक नहीं है बल्कि प्रेम और आत्म-निर्भरताका प्रतीक है। इसके बाद जोरदार तालियोंकी गड़गड़ाहटके बीच महात्माजीको माला पहनाई गई। अध्यक्षने महात्माजीको सम्मेलनमें आकर अपना आशीर्वाद प्रदान करनेके लिए धन्यवाद दिया, इसके बाद महात्माजी पण्डालमें चले गये।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २-१-१९२५

३८७. भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें शोक प्रस्तावपर

२७ दिसम्बर, १९२४

अध्यक्षने सवेरे ११ बजकर २० मिनटपर निम्नलिखित प्रस्ताव पेश किया:

कांग्रेस श्री जी० एम० भर्गरीकी मृत्युपर गहरा दुःख अनुभव करती है और उनके शोक-संतप्त परिवारके प्रति सादर समवेदना व्यक्त करती है।

प्रस्तावपर मत लेनेसे पहले अध्यक्षने कहा:[१]

भाइयो और बहनो,

मुझे कहते हुए शर्म आती है, मुझे लज्जा होती है कि जब हमने पहला प्रस्ताव पास किया, उस वक्त मैं एक बात भूल गया। आज एक सिन्ध-निवासी भाईने याद दिलाया कि जब हम हमारे नेता, जिनका स्वर्गवास हो गया, उनके लिए अफसोस जाहिर कर रहे थे, एक नाम छूट गया था। वह मिस्टर भर्गरी [का नाम] है।

आपको यह मालूम होगा, आप मेरी बात मानेंगे कि मैं जान-बूझकर छोड़ नहीं सकता था। लेकिन मेरा तो यह बुरा हाल है कि कोई बात, काममें व्यस्त रहनेपर भूल जाता हूँ। बड़ी तकलीफमें मुझे जो नाम लिखने थे, लिख लिये--वह मेरा एड्रेस

  1. यहाँतक का अंश अंग्रेजीसे अनूदित है।