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३९०. भाषण: अस्पृश्यता-सम्बन्धी प्रस्तावपर[१]

२७ दिसम्बर, १९२४

अब श्री भोपटकरसे प्रार्थना है कि वे अस्पृश्यता-सम्बन्धी प्रस्ताव पेश करें।

किन्तु ऐसा करने से पहले मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि कुछ तमिल मित्रोंने पत्र लिखकर मुझसे प्रस्तावोंको तमिलमें भी अनूदित करानेका अनुरोध किया है। मुझे अत्यन्त खेद है कि मेरे लिए ऐसा करना सम्भव नहीं है। जिन प्रान्तोंसे हमारा सम्बन्ध है, उनकी संख्या २१ है, और यदि हम प्रत्येक प्रस्तावको इतनी भाषाओंमें अनूदित करें तो वास्तवमें आगे बढ़ना असम्भव हो जायेगा। अबतक हम तीन भाषाओंको उपयोगमें लाते रहे हैं: पहली हिन्दी, जिसे जाननेकी अपेक्षा प्रत्येक व्यक्तिसे की जाती है; दूसरी अंग्रेजी और तीसरी सम्बन्धित प्रान्तकी भाषा। हम पारस्परिक सम्पर्कके उस सामान्य माध्यम, हिन्दुस्तानीको, जिसके जरिये हम एक-दूसरेको जान सकते हैं, अपना नहीं पाये हैं, क्योंकि दक्षिणने सदैव इसमें रोड़ा अटकाया है। इसीलिए हम इस प्रान्तकी भाषा तथा अंग्रेजीका उपयोग कर रहे हैं। किन्तु मैं ऐसे मामलोंमें सुझाव देना चाहता हूँ कि जो लोग प्रान्तमें अंग्रेजी या हिन्दी जानते हैं वे कष्ट उठाकर यहाँ पास किये गये प्रस्ताव अपने उन मित्रोंको समझा दें जो यहाँ बोली जानेवाली किसी भी भाषाको नहीं समझते...।[२]

भाइयो,

मुझे दर्द होता है कि पण्डितजी इस समय यहाँ नहीं हैं। मुझे कहा गया था, मैंने उनसे प्रार्थना की थी। उन्होंने कहा कि मैं इस समय कुछ बोलना नहीं चाहता। लेकिन फिर कहा गया कि पण्डितजी चन्द शब्द सुनायेंगे। लेकिन इस समय वह यहाँ नहीं हैं।

इस प्रस्तावपर राय लेनेसे पहले एक खत मेरे पास आया है, उसका उत्तर देना जरूरी है। एक भाई पूछते हैं कि अस्पृश्यता-निवारणके प्रस्तावका क्या यह मतलब है कि [ अस्पृश्योंके साथ ] रोटी-बेटीका व्यवहार करना चाहिए? इसमें [ तो ऐसी ] कोई बात नहीं कही गई। अगर मुझसे वह पूछना चाहते हैं कि आप क्या कहते हैं, तो मैंने तो 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' में अपने विचार जाहिर कर दिये हैं--और जातियोंके लोगोंके साथ हम ऐसा व्यवहार करते हैं, वैसा ही व्यवहार उनके साथ [ भी ] करें, जिनको अस्पृश्य मानते हैं।[३]

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३९ वें अधिवेशनकी रिपोर्ट।

  1. यह बेलगाँव कांग्रेसमें दिया गया था।
  2. कुछ वक्ताओंके प्रस्तावके पक्षमें बोलनेके बाद, अध्यक्षने पं० मदनमोहन मालवीयका नाम घोषित किया कि वे आकर बोलें; पर वे अनुपस्थित थे, इसलिए अध्यक्षने हिन्दीमें बोलते हुए प्रस्तावको मतदानके लिए पेश किया।
  3. प्रस्ताव विरुद्ध सिर्फ एक व्यक्तिने हाथ उठाया और अध्यक्षने प्रस्तावको स्वीकृत घोषित कर दिया।