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३९१. भाषण: बेलगाँव कांग्रेसमें[१]

२७ दिसम्बर, १९२४

भाइयो,

मैं दूसरा प्रस्ताव आपके आगे रखूँ, इससे पहले मुझे एक प्रायश्चित्त करना पड़ेगा। जब यह अस्पृश्यता-निवारणका प्रस्ताव रखा गया था, उस वक्त मैं सोचता था कि मैं एक अस्पृश्य भाईको आपके सामने रखूँगा। मेरे पास एक चिट्ठी आई थी। उसमें लिखा था कि एक अस्पृश्य भाई---जो प्रतिनिधि नहीं हैं---एक-दो लफ्ज बोलना चाहते हैं। मैं चाहता था कि प्रतिनिधि नहीं हैं तो भी अछूत भाईके नाते इजाजत देना अच्छा है। इसलिए मैं चाहता था कि उनको बुला लूँ, लेकिन मैं भूल गया। इसका प्रायश्चित्त यही है कि मैं माफी माँगता हूँ---लेकिन अच्छा हुआ कि समयपर याद आ गया है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके ३९ वें अधिवेशनकी रिपोर्ट।

३९२. भाषण: एनी बेसेंटके वक्तव्य पर[२]

२७ दिसम्बर, १९२४

इसके पहले कि मैं अन्य प्रस्तावोंको लूँ, मुझे आपको सूचित करना है कि हमने जो प्रस्ताव[३] कल पास किया था उसके बारेमें श्रीमती बेसेंट इस सभाके सामने एक वक्तव्य देना जरूरी समझती हैं। यह यशस्वी महिला क्या कहेंगी, इसके बारेमें मैं कोई पूर्वानुमान नहीं लगाना चाहता। लेकिन मैं उन्हें इस पण्डालको अपनी उपस्थितिसे सुशोभित करनेके लिए बधाई देता हूँ और मानता हूँ कि सारी सभा इसमें मेरे साथ है। वे और उनके पक्के अनुयायी कांग्रेसमें रह सकें या न रह सकें, लेकिन मैं आशा करता हूँ कि हमें उनकी सहानुभूति और नैतिक समर्थन सदा प्राप्त रहेंगे। अब मैं डा० बेसेंटसे अनुरोध करूँगा कि वे अपना वक्तव्य दें।...[४]

मित्रो, डा० बेसेंटने जो वक्तव्य दिया उसे आपने सुना। आप मुझसे उस वक्तव्यपर कुछ कहनेकी अपेक्षा नहीं करेंगे। मैं जानता हूँ कि डा० बेसेंटने यह वक्तव्य इस खयालसे नहीं दिया है कि इसका जवाब उन्हें इसी वक्त दिया जाये। उन्होंने यह वक्तव्य कर्त्तव्य-भावनासे प्रेरित होकर दिया है ताकि उनकी खामोशीका

  1. इससे पूर्व गांधीजीने एक पंचम लड़केको दो मिनट बोलनेका मौका दिया था।
  2. यह बेलगाँव कांग्रेसमें दिया गया था।
  3. देखिए "प्रस्ताव: कलकत्ता-समझौते तथा कताई-सदस्यताके बारेमें", २६-१२-१९२४।
  4. यहाँ उद्धृत नहीं किया जा रहा है।