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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अधिवेशन तथा विषय-समितिकी कार्रवाई अध्यक्षको हैसियतसे संचालित करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ। जो भी मैंने चाहा, आपमें से प्रत्येकने वह तुरन्त कर दिया। मैं जानता हूँ कि अधिवेशनके दौरानमें आपपर कामका बहुत अधिक बोझ डाले रहा। मैं जानता हूँ कि मैंने आपपर बहुत बड़ा भार डाला है। मैं जानता हूँ कि मैंने आपको चलाया नहीं, बल्कि दौड़ाया है। किन्तु मैं क्या कर सकता हूँ? आप अधीर हैं और मैं भी अधीर हूँ। हम स्वराज्यके पास पहुँचना चाहते हैं और हमें वहाँ घोंघेकी चालसे नहीं, बल्कि अपनी साधारण चालकी भी दुगुनी चालसे दौड़कर पहुँचना है। और यदि हम काम करना और आगे बढ़ना चाहते हैं तो मैं आपका और अपना एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गँवा सकता। इसलिए मैंने अपनी पूरी शक्ति लगाकर तीव्र गतिसे कार्य किया है; और यह देखकर मुझे आश्चर्य एवं सर्वाधिक सन्तोष हुआ है कि आपने मेरे कहनेपर तुरन्त और बहुत ही उत्तम ढंगसे अमल किया है। आपने ऐसा कृपणताके साथ नहीं, बल्कि अत्यन्त उदारताके साथ किया है। कोई भी व्यक्ति इससे अधिकका दावा नहीं कर सकता था, इससे अधिककी माँग नहीं कर सकता था और इससे अधिक पा भी नहीं सकता था। मैं आपसे जो-कुछ माँग सकता था, आपने मुझे सब-कुछ दिया।

किन्तु अब मैं एक वस्तु ऐसी, जो इससे अधिक बड़ी, इससे अधिक उत्कृष्ट और जो इससे अधिक मूल्यवान् है, माँगना चाहता हूँ; वह यह है कि आप अपना यह उदात्त प्रेम और अपना यह सारा औदार्य, जो आपने मेरे प्रति दिखाया है, किसी उस वस्तुकी प्राप्तिमें लगा दें, जो आपको और मुझे दोनोंको प्रिय है और जो अकेली ही मुझे और आपको एक सूत्रमें बाँधे हुए है; और वह है स्वराज्य। यदि हम स्वराज्य चाहते हैं तो हमें उसकी शर्त भी जाननी चाहिए। आपने इन शर्तोंकी पुष्टि प्रस्तावोंमें की है। इन शर्तोंका ज्ञान हममें से प्रत्येकको है। आप इन शर्तोंको यहाँ न भुला दें। आप उन्हें स्मरण रखें और उन्हें अक्षरशः तथा भावतः हर तरहसे पूरा करें और अन्य लोगोंसे भी उनको पूरा करनेका आग्रह करें। आप ऐसा बलपूर्वक नहीं, बल्कि प्रेम-भावसे करें। प्रेम जितना प्रभाव और जितना दबाव डाल सकता है, आप अपने आसपासके लोगोंपर और अपने पड़ोसियोंपर उतना प्रभाव और दबाव अवश्य डालें। आप अपने पूरे जिलेमें दौरा करें और वहाँ खद्दर, हिन्दू-मुस्लिम एकता तथा अस्पृश्यताका यह सन्देश पहुँचाये। आप देशके नवयुवकोंको साथ लें और उनको स्वराज्यके वास्तविक सैनिक बनायें।

किन्तु यदि स्वराज्यवादी और अपरिवर्तनवादी अब भी एक-दूसरेसे द्वेष रखेंगे, यदि उन्हें अब भी एक-दूसरेसे ईर्ष्या होगी तो आप यह कार्य नहीं कर पायेंगे। यह तो तभी सम्भव होगा जब आप घृणाको तिलाँजलि दे दें, ईर्ष्या, क्रोध तथा अन्य सारे दुष्प्रभावोंको भूल जायें। मैं आपसे कहता हूँ कि आप द्वेषको भूला दें। ईर्ष्याको जमीनमें दफन कर दें और जहाँ भी चाहें वहाँ ले जाकर उसकी अन्त्येष्टि कर दें। किन्तु पारित किये गये पवित्र प्रस्तावको अपने मनमें, साथ ले जायें और कहें: "चाहे कयामत आ जाये, लेकिन जिस स्नेह-बंधनमें हम आज बँधे हुए हैं और जिस