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भाषण: गोरक्षा-परिषद् में

परीक्षा तपश्चर्यामें है और तपश्चर्याका अर्थ है दुःख सहन करना। मैं मुसलमानोंके लिए यथाशक्ति दुःख सहनेको जो तैयार हुआ, उसका कारण स्वराज्य-प्राप्तिकी छोटी तो थी ही, लेकिन गायको बचानेकी बड़ी बात भी उसमें थी।

'कुरानशरीफ' में, मेरी समझसे, ऐसा लिखा है कि किसी भी प्राणीकी व्यर्थ जान लेना पाप है। मैं मुसलमानोंको यह समझानेकी शक्ति अपनेमें पैदा कर लेना चाहता हूँ कि हिन्दुस्तानमें हिन्दुओंके साथ रहकर गो-वध करना हिन्दुओंका खून करनेके बराबर है, क्योंकि 'कुरान' कहती है कि खुदाका हुक्म है कि बेगुनाह पड़ौसीका खून करनेवालेके लिए जन्नत नहीं है। अर्थात् आज जो मैं मुसलमानोंका साथ देता हूँ, उनके साथ ऐसा बरताव करता हूँ जिससे उन्हें दुःख न हो, उनकी खुशामद करता हूँ, यह केवल उनकी धर्मवृत्ति जाग्रत करनेके लिए है, न कि उनके साथ बनियापन या सौदेबाजी करनेके लिए। अपने कर्त्तव्य-पालनके फलके बारेमें मुसलमानोंके साथ बात नहीं करता। उस विषयमें तो ईश्वरसे ही बात करता हूँ। अपने 'गीता' पाठसे मैं समझता हूँ कि अच्छे कामका बुरा नतीजा कभी नहीं आ सकता। इससे मैंने निश्चय किया है कि मुसलमानोंके साथ शर्त किये बिना उनका साथ देना मेरा कर्त्तव्य है।

इसी तरह अंग्रेजोंके बारेमें। आज उनके लिए जितनी गायें कटती हैं, उतनी मुसलमानोंके लिए नहीं कटतीं। मगर मैं तो उनका भी हृदय ही हिलाना चाहता हूँ---उन्हें यह समझाकर कि पश्चिमकी सभ्यता जिस हदतक विरोधी हो उस हदतक वे उसे भूल जायें और जबतक यहाँ रहें तबतक यहाँकी सभ्यता सीख लें। यदि हम अपने स्वार्थके लिए भी अहिंसा सीख लेंगे और अहिंसाका पालन करेंगे तो गो-रक्षा हो सकेगी, अंग्रेज मित्र बन जायेंगे। अंग्रेज और मुसलमान दोनोंको मैं मरकर, यानी अपनी कुर्बानीसे खरीदना चाहता हूँ। अंग्रेज कर्मचारियोंमें आज बड़ा घमण्ड है। इसलिए जिस तरह मैं मुसलमानोंके सामने विनम्र बनता हूँ उस तरह उनके सामने नहीं बनता। मुसलमान तो आज हिन्दुओंकी तरह ही गुलाम हैं। इसलिए उनसे मित्र भावसे बात कर सकता हूँ। अंग्रेज मेरे इस मित्र भावको नहीं समझ सकते और मुझे लाचार जानकर सम्भव है, मेरा तिरस्कार करें। वे मेरी मदद नहीं चाहते। वे तो आश्रयदाता बनना चाहते हैं। इसलिए उनके प्रति मैं शान्त रहता हूँ। दान सुपात्रको और ज्ञान जिज्ञासुको ही देनेका शास्त्र-नियम है। अंग्रेज शासकोंसे मैं इतना ही कहूँगा कि आपका कृपा-भाव मुझे नहीं चाहिए। आपके साथ मैं प्रेमपूर्ण असहयोग ही करता हूँ। चौरीचौराके और बम्बईके दंगोंके समय, और अहमदाबाद वीरमगाँवके हंगामेके समय, मैंने सत्याग्रह मुल्तवी किया, उसका कारण यही था कि ऐसा करके मैं साबित करना चाहता था कि मैं हत्या करके नहीं, बल्कि अंग्रेजोंको बचाकर यानी प्रेमपूर्ण व्यवहारसे स्वराज्य लेना चाहता हूँ। आज यहाँसे अंग्रेजों और मुसलमानोंको मारकर या निकालकरमें गायको बचाऊँ तो उससे मुझे क्या सन्तोष होगा? मुझे तो सन्तोष तभी होगा जब दुनिया- भरके लोग गायको बचाने लगे; यह शुद्ध अहिंसाके पालनसे ही हो सकता है।

अब गो-रक्षाका मेरा अर्थ आपकी समझमें आ गया होगा। गो-रक्षाका स्थूल अर्थ यह है कि हम स्थूल गायकी रक्षा करें। गो-रक्षाका सूक्ष्म आध्यात्मिक अर्थ यह