है कि प्राणिमात्रकी रक्षा की जाये। आज हम अहिंसा नीतिके परिणामों और उसकी शक्तिको नहीं जानते। मुसलमान, ईसाई और हिन्दू नहीं जानते कि उनके धर्म-ग्रन्थ अहिंसासे भरे हैं। हमारे ऋषियोंने मन्त्रोंके अर्थ करनेके लिए भारी तपस्या की थी। गायत्रीका जो अर्थ आज सनातनी करते हैं वह सच्चा है या आर्य-समाजी करते हैं वह सच्चा है, यह कौन कह सकता है? मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि ईश्वरके भेजे हुए किसी भी सन्देशका अर्थ---किसी भी सूत्रका अर्थ---जैसे-जैसे हम सत्य और अहिंसाके प्रयोगमें आगे बढ़ते जायेंगे, वैसे-वैसे अधिक खुलता जायेगा। ऋषि कह गये हैं कि गो-रक्षा हिन्दूका परम कर्तव्य है, क्योंकि उससे मोक्ष मिलता है। मैं नहीं मानता कि केवल स्थूल गायकी रक्षा करनेसे ही मोक्ष मिल जायेगा, क्योंकि मोक्ष पानेके लिए राग-दोष छोड़ना जरूरी है। इसलिए गो-रक्षाका जो सामान्य अर्थ हम करते हैं, उससे व्यापक अर्थ करना चाहिए। गो-रक्षासे मुक्ति मिलती हो तो गो-रक्षाका अर्थ सिर्फ गायकी ही रक्षा नहीं बल्कि प्राणि-मात्रकी रक्षा होना चाहिए, अर्थात् कोई भी हिंसा---कटु वाक्यसे स्त्री, भाई-बन्धु किसीका भी जी दुखाना, किसी भी प्राणीको दुःख पहुँचाना--गो-रक्षाका उल्लंघन है, गो-भक्षण है। हिन्दू धर्ममें गायकी रक्षाका उपदेश है तो क्या गायको न मारना और बकरीको मारना चाहिए? गायका संकुचित अर्थ करनेसे ऐसे बहुतसे अनर्थ हो सकते हैं। गोरक्षा करनेवाले बहुत-से हिन्दू दूसरे जानवरोंका मांस खाते हैं। मेरी तुच्छ रायमें वे गो-रक्षा करनेका दावा नहीं कर सकते।
लाला धनपतराय नामक मेरे जैसा एक पागल-सा आदमी लाहौरमें मुझसे मिलने आया था। उसने मुझे कहा कि तू गो-रक्षा करना चाहता हो तो हिन्दू जो पाप कर रहे हैं उससे उन्हें बचा। उसने कहा: कोई हिन्दू अगर गायको न बेचे तो कत्ल कौन करे? कसाईको गाय कोई दे ही नहीं तो वह गाय लाये कहाँसे? इसमें आर्थिक प्रश्न है। हमारी गोचर -भूमि सरकारने ले ली। इस कारण गायका दूध देना बन्द करनेपर हिन्दू तुरन्त उसे बेच देते हैं। इसका उपाय धनपतरायने मुझे बताया। उसने कहा कि ऐसी गायको बेचने की जरूरत नहीं। गायसे बैलका काम क्यों न लिया जाय? हमारे धर्ममें ऐसा नहीं कहा गया है कि गायका भारवाहक जावनरके तौर पर उपयोग न किया जाये। हम अपनी माताओंपर जितना बोझा रखते हैं, उतना उसपर भी डालें। गायको खिला-पिलाकर, प्रातःकाल उसकी पूजा करके थोड़ा काम उससे ले लें, तो क्या बुराई है? ऐसा उस भाईने मुझसे पूछा। उसके पास बहुत-सी गायें हैं। वह उन गायोंको मोटी-ताजी करके गाड़ी और हलमें जोतता है। फिर वे फलती हैं और गो-वंश बढ़ाती हैं। यह मैंने आँखसे नहीं देखा। धनपतरायकी कही हुई बात है। मगर इसे न माननेका कोई कारण नहीं है। मैं मानता हूँ कि यह विचारने लायक बात है। कोई इस तरह भी गायकी रक्षा करता हो तो उसकी निन्दा नहीं होनी चाहिए।
इस परिषद् में कुछ प्रस्ताव सुझानेकी मेरी इच्छा थी, मगर अब प्रस्तावका समय नहीं है। और आज मैंने जो बातें कहीं, उनमें से आप कुछ बातें समझे न हों तो