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भाषण: अ० भा० देशी रियासत-परिषद् में

भी प्रस्तावोंके बारेमें 'हाँ' करें, तो उसमें मेरा और आपका कल्याण कैसे होगा? इसलिए मेरी सलाह यह है कि मेरा यह व्याख्यान सुनकर आप लोग एक कमेटी बनायें; उसमें कुछ साधु-चरित गो-रक्षा-भक्त हिन्दुओंको रखें और वे सभाका विधान बनाकर, मैंने जो बातें पेश की हैं उनमें से स्वीकार करने लायक बातें स्वीकार करके सभाको स्थायी रूप देनेके लिए अगली परिषद् में सभाका विधान पेश करें।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, २५-१-१९२५

३९९. भाषण: अ० भा० देशी रियासत-परिषद् में[१]

[ ३० दिसम्बर, १९२४ ]

पण्डालमें प्रवेश करनेपर महात्मा गांधीका जोरकी हर्ष-ध्वनिके साथ स्वागत किया गया।

उन्होंने कहा:

पिछले कुछ दिनोंमें सभी लोगोंने मेरे प्रति जो स्नेह प्रदर्शित किया है उससे मैं अभिभूत हो गया हूँ। आज आपके अध्यक्षने अपना भाषण बीच ही में स्थगित करके मुझे आपसे कुछ शब्द कहनेका अवसर देकर उस स्नेहका और प्रमाण दिया है। आपको मालूम होगा कि मैं भारतके एक गाँव में पैदा हुआ था। मैं काठियावाड़की रियासतों को जानता हूँ। उनके साथ मेरे सम्बन्ध सद्भावपूर्ण हैं। हालाँकि मैं कुछ कहता नहीं लेकिन देशी रियासतोंमें होनेवाली गति-विधियोंको बराबर देखता रहता हूँ। अध्यक्ष-पदसे दिये गये अपने भाषणमें मैंने देशी रियासतोंका उल्लेख किया है। अभी हालमें बम्बईमें जो सर्वदलीय सम्मेलन हुआ था, उसने स्वराज्यकी एक योजना तैयार करनेके लिए एक समिति नियुक्त की है और अपने भाषणमें मैंने आनेवाले स्वराज्यकी अपनी रूपरेखा बताई है। अपने विचारोंको मुझे कमसे-कम वाक्योंमें बताना पड़ा और इसलिए मैं देशी रियासतोंके बारेमें चन्द वाक्य ही कह सका। मेरे कुछ वकील मित्रोंको, देशी रियासतोंके बारेमें मैंने जो कहा है, उसपर कुछ आपत्ति है। उनका कहना है कि मैंने भारतीय राजाओंके दर्जेके बारेमें तो कहा है लेकिन अपनी प्रजाके प्रति उनके दायित्वों के बारेमें कुछ नहीं कहा है। लेकिन मुझे अपने इन मित्रोंको यह याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि अधिकारके साथ ही दायित्व भी हमेशा जुड़ा होता है। भारतीय स्वराज्यकी मेरी योजनामें देशी रियासतोंको समाप्त करनेका कोई विचार नहीं है। मैं अपना यह मत जनताके सामने बिलकुल स्पष्ट रूपमें रख देना चाहता था। लेकिन यदि किसी देशी नरेशके अत्याचारोंके कारण देशी रियासतोंकी प्रजा भागकर ब्रिटिश भारतीय सीमामें आ जाये तो स्वराज्य सरकार किसी भी कीमतपर इन लोगोंको

  1. यह परिषद् बेलगाँव में हुई थी तथा इसकी अध्यक्षता न० चि० केलकरने की थी।