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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गये हैं, उसी समय लॉर्ड हार्डिगने मद्रासमें एक घोषणा की और उससे भारतीयोंको काफी लाभ हुआ। इसका कारण यही था कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय लोग सत्याग्रह कर रहे थे। यदि आप उनकी सहायता करना चाहते हैं तो अपनी सहायता आपको पहले करनी चाहिए।

मुझे यह सुनकर दुःख हुआ कि पूर्व आफ्रिकामें भारतीयोंने कौंसिलोंमें जानेका निश्चय किया है और बाहरका काम छोड़ दिया है। मैं कह नहीं सकता कि यह सही है या गलत क्योंकि इतनी दूरसे उसके बारेमें मैं कुछ धारणा नहीं बना सकता।

हमारे लिए समय है कि हम अपनी शक्ति बढ़ायें। तब आप देखेंगे कि लॉर्ड रीडिंग भी वही रास्ता अख्तियार करेंगे जो लॉर्ड हार्डिगने किया था। हिन्दू-मुस्लिम एकता अत्यन्त आवश्यक है और इसके साथ ही खद्दर पहनना भी जरूरी है, लेकिन मैं नहीं जानता कि यह बात मुझे यहाँ कहनी चाहिए या नहीं। मैं चाहता हूँ कि सभी सरकारी पद मुसलमानों, पारसियों और ईसाइयोंको दिये जायें, क्योंकि उनकी संख्या कम है और यदि फिर भी कुछ बच रहें तो वे हिन्दुओंको दिये जायें।

मुझे बंगालमें खादी कार्यके बारेमें अपने एक साथी कार्यकर्त्ता श्री [ सतीश बाबू ] रायसे पता चला है। वहाँ यह कार्य मुख्यतः मुसलमान औरतें कर रही हैं। वे अपनी आजीविका चरखेसे कमाती हैं। अतः यदि आप उन्हें लाभ पहुँचाना चाहते हैं तो खादी पहनिए। यदि आप मिस्रकी सहायता करना चाहते हैं तो जैसा मैं मौलाना मुहम्मद अलीको बता चुका हूँ, इसका एकमात्र रास्ता यही है कि आप पहले स्वराज्य प्राप्त करें तब और केवल तभी आप सच्चे अर्थमें टर्की, मिस्र और अरबकी मदद कर सकते हैं। हिन्दू और मुसलमान कागजी समझौतों और प्रस्तावोंके जरिये ही नहीं, बल्कि दिलसे परस्पर एक होंगे तभी आप भारतमें और भारतसे बाहर इस्लामकी रक्षा कर सकते हैं। आप कृपया ये चीजें एक सालतक करें और फिर इनके परिणाम आप खुद ही देखेंगे। (हर्ष-ध्वनि)

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल १-१-१९२५

४०२. बेलगाँवके संस्मरण [--१]

जब कि बहुतेरे अक्स मनमें उभर रहे हों और वे सभी अभिव्यक्तिके लिए तड़प रहे हों तब उनको लिपिबद्ध करनेवालेका काम सचमुच बड़ा ही कठिन हो जाता है। बेलगाँवके अपने संस्मरण लिखनेके लिए पेन्सिल हाथ लेते समय मेरी हालत ऐसी ही हो रही है। मैं कोशिश-भर कर सकता हूँ।

गंगाधरराव देशपाण्डे और उनके साथियोंकी टोलीने अतीव दक्षता दिखाई। उनके विजयनगरको तो विजय ही समझिए---स्वराज्यकी तो नहीं; पर संगठनकी विजय तो अवश्य ही थी। छोटी-छोटी बाततक बड़े सुनियोजित ढंगसे की गई थी। डा० हार्डीकरके स्वयंसेवक चुस्त और चौकस थे। सड़कें चौड़ी और साफ-सुथरी थीं। वे