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४०४. टिप्पणियाँ

दो वादे

एक तमिल प्रतिनिधिने यह वचन दिया है:

वादा करता हूँ कि मैं ३० अप्रैल, १९२५ के पहले, मदुरई शहरमें दस हजार चरखे चलवा दूँगा।

आपका सदाका भक्त,
एल० के० तुलसीराम

श्री तुलसीरामने तमिल प्रतिनिधियोंकी एक सभामें मुझे यह पुर्जा दिया था। दरअसल दस हजार चरखे चलवानेके मानी हैं, उतने सदस्य बनाना। यदि अकेले मदुरा शहरसे दस हजार सदस्य मिल सकते हैं तो सारे तमिलनाडसे कितने सदस्य मिल सकेंगे?

दूसरा वादा, जो इससे भी अधिक महत्त्वका है, मौलाना जफर अली खाँकी तरफसे मिला है। उन्होंने संकल्प किया है कि मेरा कार्य-काल खत्म होनेतक वे २५,००० मुसलमान कातनेवालोंको सदस्य बना लेंगे। यदि मौलानाको इसमें सफलता मिली तो वे बड़ीसे-बड़ी बधाईके हकदार होंगे--इसलिए नहीं कि लोगोंमें सचमुच रुचि जागनेपर पंजाबमें २५,००० मुसलमान सदस्योंकी संख्या कोई बहुत बड़ी संख्या है, बल्कि इसलिए कि जब इतने सारे लोग कताई सदस्यताके फलस्वरूप एक बड़ी विडम्बनाकी भविष्यवाणी कर रहे हैं, तब मौलाना साहबका इस प्रकार संकल्प करना मेरी रायमें सचमुच अद्भुत है। मैंने मौलानासे कह दिया है कि यदि वे अपना वादा तोड़ेंगे तो मुझे उनके खिलाफ उपवास करना होगा। उन्होंने तड़से उत्तर दिया था कि बेशक वे नहीं चाहते कि मैं खुदकुशी कर लूँ। उन्होंने यह भी कहा कि वे उसे पूरा करना न चाहते और उसको पूरा करना उन्हें नामुमकिन लगता तो वे यह वादा ही न करते। मैं चाहता हूँ कि हर प्रान्तसे ऐसे ही वादे मिलें। लेकिन जोशमें आकर वचन देनेकी जरूरत नहीं। जबतक साथमें अटल संकल्प न हो, तबतक वचन देनेका कुछ भी अर्थ नहीं होता। मैं जानता हूँ कि लड़ाईके दिनोंमें अधिकारियोंकी तरफसे प्रत्येक प्रान्तके लिए एक निश्चित परिमाणमें धन-जनकी मदद देना तय कर दिया जाता था और हरेकको उतना धन-जन जुटाना पड़ता था। उसमें उनको कितना देना होगा, यह मुकर्रर रहता था और न देनेपर उसके साथ दण्डकी व्यवस्था भी थी। परन्तु, क्या इसलिए कि प्रान्तोंको खुद ही अपना कोटा आप मुकर्रर करनेके लिए कहा गया है। और इसलिए कि वादा तोड़नेपर कोई सजा तजवीज नहीं की गई हैं, उन्हें कम काम करना चाहिए?