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भाषण: अन्त्यज आश्रम गोधरामें

भी गुजराती न ले। भाई सुखदेवने मुझे कहा है कि उन्होंने सूत कातना छोड़ दिया है। मुझे यह बात मालूम न थी। वे अन्य कार्य करते होंगे, लेकिन वे कातना छोड़ देंगे तो इससे हमारी भारी दुर्दशा होगी। और भाई सुखदेवको कातना अच्छा नहीं लगता सो बात नहीं है, किन्तु उन्हें कातनेमें आलस्य महसूस होता है। मैं किसी गुजरातीसे इन शब्दों को सुनना नहीं चाहता।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, ११-१-१९२५

४०८. भाषण: अन्त्यज आश्रम गोधरामें

२ जनवरी, १९२५

आपने अनेक प्रकारके संवाद और भजन सुने। कौन कह सकता है कि वे संवाद अन्त्यज बालकोंके थे अथवा भगवानकी भक्तिके इन भजनोंको उन्होंने ही गाया। परिषद्का परिणाम ऐसा होगा, यह कौन जानता था? मैंने तो अन्त्यजोंसे सम्बन्धित प्रस्तावपर बोलते हुए सबको अन्त्यज बाड़े में जानेका सुझाव दिया था। मैंने समझा था कि परिषद् में गोधराके भाई-बहन हैं, लेकिन मुझसे भूल हुई। इसमें अनेक ऐसे भाई-बहन आये थे जो गोधरा निवासी नहीं थे। हालाँकि उनमें से अधिकतर लोग गुजरातके थे। उस समय हमें काफी धन मिला। हमने उससे अन्त्यज- शाला खोली। परन्तु गोधराके भाइयों और बहनोंने उसका स्वागत नहीं किया, इतना ही नहीं बल्कि उसके प्रति अपनी अरुचि बताई। ऐसी ही स्थिति अन्त्यज भाइयोंकी भी थी। अन्त्यजोंकी पाठशालामें अन्त्यज बालकोंको ही लाना मुश्किल हो गया। एक समय ऐसा आया कि यहाँके कार्यको बन्द करनेके प्रस्तावपर गंभीरतासे विचार करनेका मन हुआ, लेकिन बादमें वह विचार स्थगित कर दिया।

मामा[१] दक्षिणके हैं; लेकिन इन्होंने गुजराती पढ़ ली है। इन्हें अन्त्यजोंका कार्य प्रिय है; यह बात मैंने आश्रममें देखी थी। इन्हें मैंने गोधरामें जमकर बैठनेकी सलाह दी। उसके बाद मैं जेल चला गया। मेरे बाद इसका दायित्व और असह्य बोझ वल्लभभाईने उठाया। इसी बीच यह मकान बना। यह मुझे पसन्द नहीं है। यह अधूरा है, सो बात नहीं, लेकिन यह हमें शोभा नहीं देता। इसकी सुन्दरतामें कोई त्रुटि नहीं है, लेकिन यह ऐसा होना चाहिए जो हमें शोभा दे। मामा शिल्पी नहीं हैं, लेकिन उनके मनमें प्रेम और भक्ति है। वे अन्त्यजोंके प्रति अपने प्रेममें बह गये और इसमें २०,००० रुपया खर्च कर दिया। बल्लभभाईमें इतना रुपया इकट्ठा करनेकी शक्ति नहीं थी; लेकिन सौभाग्यसे पारसी रुस्तमजीने इस प्रकारके कार्यके लिए कुछ धन दिया था। उसमें से ही इस मकानके लिए पैसा लिया गया। लेकिन यह मकान ऐसा होना चाहिए था जो हमको, अन्त्यजोंको, गरीबों को शोभा देता। हम लोग गरीब हैं और इसमें भी सबसे गरीब हैं हमारे अन्त्यज भाई। ये बिना मालिकके

  1. विट्ठल लक्ष्मण फड़के।